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सा ठ के दशक में शारदा संगीत समिति, मिलन संगीत समिति, राजभारती ऑरकेस्ट्रा के प्रत्येक मंच से हेमन्त कुमार के गीत को हूबहू पेश करने वाले राजनाँदगाँव के गायक भैयालाल हेड़ाऊ के नाम की घोषणा होते ही दर्शक दीर्घा में खुशी और जोश का तूफान आ जाता था। एक बार माइक पर आ जाने में बाद दर्शक उन्हें बैठने ही नहीं देते थे। उनसे लगातार सुनते रहते थे। सत्तर के दशक की शुरूआत में हेड़ाऊ जी, दाऊ रामचंद्र देशमुख के चंदैनी गोंदा से जुड़े जहाँ उनकी पहचान न केवल लोक गायक के रूप में हुई बल्कि उनकी अभिनय क्षमता से भी यह संसार परिचित हुआ। वे अपने गायन और अभिनय का लोहा मनवाते हुए चंदैनी गोंदा के विसर्जन के बाद भी कारी के प्रदर्शन तक तक दाऊ जी से जुड़े रहे।अस्सी के दशक के प्रारंभ में मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के सुप्रसिद्ध निर्माता निर्देशक सत्यजीत रे की पारखी नजरों से भैयालाल हेड़ाऊ जी की अभिनय प्रतिभा छिप न सकी। रे साहब ने उन्हें अपनी फिल्म सदगति में एक आदिवासी की महत्वपूर्ण भूमिका दी। सदगति एक कला फिल्म थी जिसमें ओमपुरी, स्मिता पाटिल और मोहन अगासे जैसे अभिनय के मंजे कलाकारों के साथ हेड़ाऊ जी ने अभिनय किया। उन्हें मुंबई चलने का ऑफर भी मिला किन्तु अपनी माटी से असीम प्रेम करने वाले भैयालाल जी ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। मुझे चंदैनी गोंदा के कुछ प्रदर्शन मंच के काफी करीब से देखने का भी अवसर मिला। मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि भैयालाल जी के चेहरे से अभिनय स्वाभाविक रूप से छलकते रहता था। जब वे मंच के पार्श्व में भी रहते थे तब मंच पर अभिनय करते पात्रों के भाव उनके भी चेहरे पर सहज रूप से आते-जाते रहते थे। वे गायन की तरह ही अभिनय को भी हर क्षण जीते थे। चंदैनी गोंदा में कवि कोदूराम दलित जी का गीत छन्नर-छन्नर पैरी बाजे, खन्नर-खन्नर चूरी, हाँसत कुलकत मटकत रेंगय बेलबेलहिन टूरी और कवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी का गीत हम तोरे सँगवारी कबीरा हो, हम तोरे सँगवारी, भैयालाल हेड़ाऊ जी की विशेष पहचान बन गए। गायिका अनुराग ठाकुर के साथ उनका युगल गीत मन के मिलौना मिलत नइये तोर बाली हे उमरिया करौंदा बतावँव का ला वो आज भी युवा दिलों की धड़कन बना हुआ है। लक्ष्मण मस्तुरिया, अनुराग ठाकुर और कविता वासनिक के साथ हेड़ाऊ जी के स्वर में सुप्रसिद्ध होली गीत मन डोले रे माँघ फगुनवा, रस घोरय रे माँघ फगुनवा, छत्तीसगढ़ में होली का पर्याय बन गया है।भैयालाल हेड़ाऊ जी की आवाज में एक ऐसा विशेष बेस था, जो बहुत कम कलाकारों को नैसर्गिक रूप से मिला है। गायक हेमन्त कुमार और अमिताभ बच्चन के अलावा यह विशिष्टता हेड़ाऊ जी को प्राप्त थी। इस विशिष्टता का प्रयोग चंदैनी गोंदा के संगीतकार खुमानलाल साव और गिरिजा कुमार सिन्हा ने बड़ी ही खूबसूरती से एक गीत में किया। संगी के मया जुल्म होगे रे यह गीत कविता वासनिक ने गाया है और इसमें हेड़ाऊ जी ने केवल गुनगुनाया है। यह गीत भी अमर हो चुका है। कुछ गीत आज सुनने को नहीं मिलते किन्तु चंदैनी गोंदा के मंच पर बहुत लोकप्रिय रहे उनमें से एक गीत यह है-झन आँजबे टूरी आँखी मा काजर, बिन बरसे रेंग देही करिया बादर छूट जाही वो परान, हँस-हँस के कोन हा खवाही बीड़ो पान, हाय-हाय नइ बाँचय, एक दिन नइ बाँचय चोला, छूट जाही ओ परान। सन उन्नीस सौ नब्बे में भारतीय स्टेट बैंक इन्क्लेव सेक्टर 8 भिलाई में गणेशोत्सव के दौरान भैयालाल हेड़ाऊ जी, कविता वासनिक जी की टीम के साथ आये थे। कार्यक्रम समाप्ति की घोषण के बावजूद दर्शकों ने मंच को घेर लिया था और भैयालाल हेड़ाऊ जी से हेमन्त कुमार के गीत गाने का आग्रह किया, तब भैयालाल हेड़ाऊ जी हेमन्त कुमार के एकल और कविता वासनिक के साथ युगल गीत नॉन स्टॉप बहुत देर तक गाते रहे। दर्शकों का वह जुनून देखते ही बन रहा था। आज भी वह दृश्य आँखों में जीवन्त होकर तैर रहा है। अभी अभी 1 मार्च को मितान, छत्तीसगढ़ी लोक कलाकार संघ, राजनाँदगाँव द्वारा आयोजित महोत्सव में चंदैनी गोंदा के उदघोषक सुरेश देशमुख जी गए थे। उन्हें पता चला कि भैयालाल हेड़ाऊ जी किसी दुर्घटना के शिकार हो गए हैं तब वे चंदैनी गोंदा की वरिष्ठ कलाकार शैलजा ठाकुर के साथ गोल बाजार स्थित उनके निवास स्थान गए थे। सुरेश देशमुख जी ने मुझे तस्वीर भेजते हुए बताया था, कि हेड़ाऊ जी उस दिन की मुलाकात के दौरान बहुत भावुक हो गए थे, उनकी आँखों से आँसू भी छलक आए थे।भैयालाल हेड़ाऊ जी से मेरी अंतिम मुलाकात 05 सितम्बर 2017 को राजनाँदगाँव में खुमानलाल साव नागरिक अभिनंदन के दौरान हुई थी। वे बड़ी आत्मीयता से मिले थे। उनके हाथ में एक छड़ी थी। मैंने पूछा था कि किसी के साथ आए हैं क्या तब उन्होंने हँसते हुए अपने अंदाज में कहा था, अभी बुढ़ाए नइ अंव, मोला कखरो सहारा के जरूरत नइ पड़े हे। खुदे आना जाना कर लेथंव। कुछ देर पुरानी यादों का दौर चला तभी शिव कुमार दीपक जी भी आ गए फिर क्या था, दोनों एक दूसरे से तपाक से गले मिले और पुराने जमाने की शरारत के मूड में आ गए। मैंने मोबाइल से उस आत्मीय क्षण को कैमरे में कैद करना चाहा था, किंतु शरारती अभिनय कैद नहीं कर पाया और केवल तस्वीर ही कैद हो पाई। लक्ष्मण मस्तुरिया जी से भी इसी आयोजन में मेरी अंतिम मुलाकात हुई थी, हालाँकि उनसे इसके बाद भी दूरभाष पर बातचीत होती रही थी। समय कितना क्रूर है। 05 सितम्बर 2017 को राजनाँदगाँव में जिन्हें हमने देखा और सुना था, छत्तीसगढ़ की वे तीन महान हस्तियॉं क्रमश: खुमानलाल सावए लक्ष्मण मस्तुरिया और भैयालाल हेड़ाऊ जी इतनी अल्प अवधि में हमसे जुदा हो गए। भैयालाल हेड़ाऊ जी ने मेरे पिताजी के गीत छन्नर छन्नर पैरी बाजे को अपने स्वर के जादू से जीवंत कर दिया था, इस वजह से भी उनसे ज्यादा लगाव था। भौतिक रूप से वे हमसे जरूर बिछड़ गए हैं किंतु उनकी कला सदैव अमर रहेगी। छत्तीसगढ़ के रंगमंच और छत्तीसगढ़ी लोक गीतों की दुनिया में वे सदैव अमर रहेंगे।हम तोरे सँगवारी कबीरा हो, हम तोरे सँगवारीले के हाथ लुआठी आपन, फूँके हन घर-बारीकबीरा हो, हम तोरे सँगवारी
-अरुण कुमार निगमआदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढलोक का बाजार और बाजार में लोक
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