छत्तीसगढ़ अंचल में भिन्न धर्म व वर्गों के लोग रहते हैं, इनकी भाषाएं, धार्मिक विश्वास और दृष्टिकोण भी अलग-अलग हैं, फिर भी भावनात्मक रूप से ये सब आपस में जुड़े हुए हैं। यही एकता आदिकाल से लोकजीवन को मातृभूमि के प्रति गर्व की अनुभूति कराती रही है। जहां तक लोक संस्कृति का प्रश्न है, उसे ग्रामीण जीवन के निकटता के बिना समझा नहीं जा सकता। यह जानने और समझने के साथ ध्यान देने योग्य बात है कि ग्रामीण अधिक पढ़े-लिखे नहीं होने के कारण अपनी संस्कृति के बारे में ज्यादा कुछ बता नहीं सकते। लेकिन हमारे उत्सव, गीत और नृत्य हमारी संस्कृति का परिचय हमें सहज ही दे देते हैं। देखा जाए तो छत्तीसगढ़ का लोकजीवन प्रकृति के अत्यंत निकट है। जिसमें नदिया, पहाड़, जंगल और वादियां सभी समाहित होती हैंै। इसमें किसानों का श्रम उनके संकल्प में परिणाम के रूप में हरियाली वातावरण के साथ उनका आत्म विश्वास स्पष्ट झलकता है। जीवन संघर्ष के सभी रसों से उसका परिचय है। ऋतु उसे दुलारती पुचकारती और धन्य हो जाती है। इसे अछूती रचना प्रार्थना का शिवत्व सतत प्राप्त है। इसी तरह लोक जीवन में गीत व संगीत को देखें तो समूचा छत्तीसगढ़ प्रारंभ से ही अपनी गीत सम्पदा के लिए सुविख्यात रहा है। विरह गीतों की बहुलता इसकी अपनी विशेषता है। अभिव्यंजना शैली में चाहे शास्त्रीयता का पुट न हो, किन्तु वे लोकगीत निसंदेह यहां के जीवन दर्शन को मार्मिक ऊंचाई प्रदान करते हैं। आदिम जनजातियों एवं कृषि युगीन -सभ्यता से सम्बद्ध समाज को सृजनात्मक विकास का अवसर एवं सुविधा देकर उन्हें शेष समाज से जोड़ा जा सकता है, पिरोया जा सकता है। हमारे लिए हमारे पूर्वजों के सामाजिक -जीवन, रीति-रिवाज, भावना ,इच्छा, आकांक्षा, सृजनात्मक एवं कलात्मक उपलब्धियों के और भाषा के स्वरूपों से परिचित होना और आनेवाली पीढ़ियों को भी इनसे परिचित कराना आवश्यक है। इस तरह हम अपनी परम्परा से जुड़ते चले जाते हैं। इससे हमारे भूगोल, इतिहास, पुरातत्व ,कला ,शिष्टाचार आदि पर भी पर्याप्त रोशनी पड़ती है। फिर भी सभी चीजों को सामाजिक, आर्थिक संरचना के आधार के साथ बनाये रखना संभव नहीं है। अत: लोक-साहित्य और लोक-कला के विभिन्न रूपों में ही प्रयत्नपूर्वक उन्हें बचाकर रखा जा सकता है। लोक-संस्कृति के भौतिक रूपों को यत्न से संग्रहालयों में रखा जा सकता है। फिल्म या वीडियो कैसेट में संग्रहित किया जा सकता है। अथवा प्राचीन ग्रन्थों,स्मारकों की तरह इनकी सुरक्षा की जा सकती है। यही प्रयास लोक कला दर्पण भी करने का प्रयास कर रहा है। आशा है आप पाठकों और लेखकों का अपेक्षित सहयोग हमें मिलेगा। .....जय जोहार
गोविन्द साहू (साव)
संपादक
लोक कला दर्पण
contact - 9981098720
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