देश विदेश में संगीत के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले चुनिंदा विश्वविद्यालयों में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़
खैरागढ़ का इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय एशिया के उन कुछ चुनिंदा संस्थानों में से है, जो संगीत और कला को पूरी तरह समर्पित है। यह एशिया का पहला ऐसा संस्थान है, जो कला और संगीत में उच्च शिक्षा देने हेतु स्थापित किया गया है। खैरागढ़ आजादी से पहले एक छोटी सी स्वतंत्र रियासत हुआ करती थी, जहां के राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती ने ही 1956 में इस विश्वविद्यालय की नींव रखी थी। इसकी स्थापना के लिए उन्होंने अपना राजभवन दान किया था। आज भी विश्वविद्यालय का कामकाज इसी भवन में होता है।
नामकरण
इस विश्वविद्यालय के नामकरण को लेकर अक्सर लोगों में भ्रम रहता है कि इसका नाम देश की पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। इसका नाम खैरागढ़ के राजा बीरेंद्र बहादुर सिंह की बेटी इंदिरा के नाम पर है, जो कम उम्र में ही चल बसी थीं। वे संगीत की बहुत शौकीन थीं, इस कारण इस विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया।
गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन
आज भी यहां गुरु-शिष्य परम्परा के बीज दिखाई देते हैं। संगीत विभाग, नृत्य विभाग, कला, दृश्य कला और लोक संगीत विभाग इसके हिस्से हैं और इनके द्वारा इनसे जुड़े क्षेत्रों में प्रमाण पत्र स्तर से लेकर डॉक्टरेट स्तर तक के पाठयक्रमों को तैयार किया गया है, जो देश भर में उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं। अल्पकालीन पाठयक्रमों से लेकर दीर्घकालिक पाठयक्रम यहां उपलब्ध हैं।
आज भी यहां गुरु-शिष्य परम्परा के बीज दिखाई देते हैं। संगीत विभाग, नृत्य विभाग, कला, दृश्य कला और लोक संगीत विभाग इसके हिस्से हैं और इनके द्वारा इनसे जुड़े क्षेत्रों में प्रमाण पत्र स्तर से लेकर डॉक्टरेट स्तर तक के पाठयक्रमों को तैयार किया गया है, जो देश भर में उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं। अल्पकालीन पाठयक्रमों से लेकर दीर्घकालिक पाठयक्रम यहां उपलब्ध हैं।
विशेषताएं
यहां संचालित पाठ्यक्रमों में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, स्नातक, परास्नातक और विषय विशेष में डॉक्टरेट के अलावा यह विश्वविद्यालय विशेष रूप से संगीत के क्षेत्र में इंटर डिसिप्लिनरी रिसर्च के लिए जाना जाता है। यहां देश-विदेश के बहुत से छात्र खुद को भारतीय संगीत में शोध के लिए समर्पित करते हैं। संगीत के क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने के बाद धीरे-धीरे यह विश्वविद्यालय अब विजुअल आर्ट्स की शिक्षा का भी महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। यहां का बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स कोर्स छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय है। संगीत में गायन-वादन के अतिरिक्त नृत्य कला में यह कथक और भरतनाटयम के लिए मशहूर है।
संसाधन
इस परिसर में जहां एक तरफ शोधार्थियों के लिए जरूरत का सभी संसाधना उपलब्ध है वहीं यहां के पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें हैं और साथ ही बहुत बड़ी संख्या में संगीत के महारथियों के ऑडियो और वीडियो टेप्स भी छात्रों के लिए सुलभ हैं। दूसरी तरफ कला के छात्रों के लिए भी यहां विशेष रूप से आधुनिक महान कलाकारों के काम का वीडियो और स्लाइड के रूप में विशाल संग्रह उपलब्ध है। समकालीन कलाकारों और देश की विभिन्न लोक कलाओं का संकलन भी छात्रों के लिए किया गया है।
पाठ्यक्रम
कला-संगीत से जुड़े विषयों पर होने वाले राष्ट्रीय सेमिनार, कला और संगीत के इतिहास में होने वाले बदलावों पर भी यहां अक्सर संगोष्ठियां आयोजित होती हैं। यह विश्वविद्यालय अब रचनात्मक लेखन विषयों में भी अपनी पहचान बना रहा है और साहित्य के विषयों में भी यहां शिक्षा उपलब्ध है।
सुविधाएं
खैरागढ़ विश्वविद्यालय भारतीय संगीत की दोनों विधाओं, हिंदुस्तानी
और कर्नाटक शैली में शिक्षा प्रदान करता है। कला की पारंपरिक और आधुनिक विधाओं में
भी
यहां छात्रों को पारंगत बनाया जाता है। विदेशी छात्रों के लिए विशेष सुविधाओं का
प्रबंध है और उन्हें यहां अंग्रेजी में शिक्षा उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था है।
यहां छात्रावास की सुविधा भी है।
फैकल्टी
यहां के छात्रों को संगीत और कला दिग्गजों से
मिलने का मौका मिलता है। उनमें से कई यहां अक्सर गेस्ट फैकल्टी के रूप में आते
हैं। यहां हर वर्ष संगीत और कला उत्सव मनाया जाता है, साथ ही खैरागढ़
महोत्सव, युवा उत्सव और हर हफ्ते होने वाला श्रुति मंडल कार्यक्रम छात्रों को
उनके विषय में प्रयोगात्मक बना कर उनकी प्रतिभा में निखार लाया जाता है।
विशेष
संगीत के छात्रों के लिए यहां एक वाद्य गैलरी
में सभी
तरह के संगीत वाद्यों का संकलन है। यहां एक गैलरी पुरातात्विक महत्व की भी है,
जहां
क्षेत्रीय पुरातात्विक कला संग्रह और दस्तावेजों का संकलन है। इंदिरा कला संगीत
विश्वविद्यालय से संबद्ध पैंतालिस महाविद्यालय, एक शोध केंद्र व
अनेक परीक्षा केंद्र हैं। इसी तरह आधुनिक संसाधनों के साथ छात्रों के लिए बेहतर
शिक्षा व संगीत उपलब्ध कराने के लिए यह संस्थान प्रतिबद्ध है।
संपादक की डेस्क से
गोविन्द साहू (साव)
लोक कला दर्पण
contact - 9981098720
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