आवव गरब ले बोलव छत्तीसगढ़ी


छत्तीसगढ़ ल भले अलग राज बने 17 साल होगे अउ छत्तीसगढ़ी भासा ल लेके भले अलग आयोग बनगे फेर अभी ले छत्तीसगढ़ी कोनो मेरा लागू नई होहे। अउ एकर कारन हमी मन हरन। काबर छत्तीसगढ़ म रही के हमन ह छत्तीसगढ़ी बोले बर लजाथन-सरमाथन त दूसर भासा के बोलइया मन ले हमन कइसे छत्तीसगढ़ी के आस लगा सकथन। सोचे के बात तो ए हरे कि आज छत्तीसगढ़िया मन ह मानसिकता बना ले हे कि छत्तीसगढ़ी बोलइया मन ह गवांर होथे। अउ एकर बर एक पैमाना घलो तय कर डारे हे कि जउन ह अंगरेजी बोलथे वो हा मंडल, हिंदी बोलइया गरीब अउ छत्तीसगढ़ी बोलइया भिखारी। अइसन मानसिकता ह महतारी भासा बर खतरनाक आय। कही अइसे मत हो जाए कि छत्तीसगढ़ी भासा ह नंदा जही। अब बेरा आगे हे ए भासा ल जतन के रखे के तभे हमर संस्कृति अउ पहचान ह बचे रही। 

आज के नेता अउ अभिनेता मन ह अपन काम साधे बर दू-चार लाइन छत्तीसगढ़ी बोल देथे। कोनो मंत्री अउ विधायक ह छत्तीसगढ़िया मन कर दू लाइन छत्तीसगढ़ी बोल के अइसे दिखाथे कि जानो-मानो ओ ह छत्तीसगढ़ी भासा के बोलइया आय। ओकर आफिस म मिले बर कोनो मनखे ह चल देथे त हिंदी अइसन बोलही अउ रोब दिखाही जानोमानो उही ह हुसीयार आय बाकी सब भोकवा। छालीवुड के बात करे जाय तो निर्माता-निर्देशक अउ हीरो-हिरोइन ह घलो अपन असल जिनगी म छत्तीसगढ़ी म नइ गोठियाय। भले पूरा ढाई घंटा के फिलिम म बनावटी छत्तीसगढ़ी बोलही। सुटिंग के बेरा तो अइसे हिंदी अउ इंगलिस बोलथे कि छत्तीसगढ़ी के सुध घलो नइ रहाय। अब अइसन मनखे ह कोनो फिलिम बनाही त का छत्तीसगढ़ के कला-संस्कृति ह दिख पाही। अउ का अइसन फिलिम ह चल पाही।


छत्तीसगढ़ी भासा के साथ अन्याय करे म छत्तीसगढ़िया मन के घलो हाथ हाबय। अब तो गांव के मनखे सहर म का आ जथे पूरा अपन महतारी भासा ल भूला जथे। अउ कोनो गांव देहात के संगवारी मिलथे ओकरो ले छत्तीसगढ़ी म नइ गोठियाय। इहा के मनखे ह जब तक ले छत्तीसगढ़ी बोले म गरब नइ करही अउ अधिकार के साथ नह बोलही तब तक कतको छत्तीसगढ़ी ल लेके संगठन बनही अउ आयोग बनही फेर पोठलगहा काम नइ होवय। आज तो होवत लइका ल अंगरेजी के रंग म रंगे बर ओकर दाई-ददा ह पूरा ताकत ल लगा दे हे। वइसे भासा सिखना कोई गलत बात नोहे। ए तो अउ बढ़िसा आय। फेर दूसर भासा ल सिखे बर अपन महतारी भासा ल भुला देना कतका खराब आय। आज कोनो अपन लइका ल छत्तीसगढ़ी सिखाय-बताय के कोसिस नई करय। सबे झन ह अपन लइका ल महंगा ले महंगा इंगलिस इसकूल म भरती कराथे। ताहन लइका ह न तो ढंग से छत्तीसगढ़ी सिख पाय न हिंदी अउ अंगरेजी तो बस रटे रूटाय रइथे। ताहन लइका के न घर के न घाट के जइसन हो जथे। अब ओला अंगरेजी नइ आय न हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी। ए कतेक जायज हे हमर संस्कृति ल भुला के दूसर के ल अपनाय बर मूड़ी-पूछी एक कर देना। कहू अइसे मत हो जाए छत्तीसगढ़ी भासा मर जही। अब बेरा आ गे हमन ह अभी ले अपन महतारी भासा ल लेके जागरूक हो जावन। हमर अवइया पीढ़ी ल घलो सिखावन अउ गरब ले बोलन छत्तीसगढ़ी भासा ल। 


हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ कला म कोनो कमी इ हे। नाचा-गम्मत, लोकगीत, लोकसंगीत अउ लोकनृत्य के भरमार हाबय। छत्तीसगढ़ी साहित्य ह घलो पोठ हे। तभे ले छत्तीसगढ़ी भासा के बिकास नई हो पाना गुने के बात आय। देस के सबे राज म अपन-अपन महतारी भासा म लिखई, पढ़ई अउ गोठबात, बिचार-बिमरस होवत हे। अउ जानकार मन के कहना हे कि लइका ल महतारी भासा म ही सिक्छा देना चाही। काबर जतका दूसर भासा ल सिखे बर समय लागथे ओतका म लइका ह अपन बिसय ल पूरा ढंग ले जान लेथे। अउ रचनातमक काम करे ल धर लेथे। दूसर भासा के जादा दबाव ह लइका अउ महतारी भासा के बिकास म बाधा आय। हमर छत्तीसगढ़ के पंडवानी, सुआनाचा, ददरिया, गम्मत, राउतनाचा, पंथीनाचा, जसगीत ह देस भर म अपन अलग पहचान बनाय हे। छत्तीसगढ़ी भासा ल जीवित रखे बर डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा, रामचंद्र देशमुख, लक्ष्मण मस्तुरिया, तीजन बाई, देवदास बंजारे अउ दूसर साहित्यकार-कलाकार मन ह बढ़ सुघ्घर काम करे हे। ए मन ह अपन उमर भर छत्तीसगढ़ी भासा के सेवा करे हे। तब आज हमर भासा ह सांस लेवत हे। अभी भी अइसने पोठलगहा साहित्यकार अउ कलाकार के जरूरत हे तब हमर छत्तीसगढ़ी भासा ह जन-जन तक पहुंचही। आवव अब रोज के बोलचाल म छत्तीसगढ़ी भासा ल सामिल करन। चाहे घर होय या आफिस छत्तीसगढ़ी म गोठियावन। अधिकारी, कर्मचारी, नेता, मंत्री अउ साधारन मनखे ह बेझिझक छत्तीसगढ़ी गोठियाही तभे हमर भासा ह बाच पाही। संगे-संग इसकूल के पढ़ई म घलो छत्तीसगढ़ी भासा ल जरूरी करे जाय। एकर ले लइका मन ल अपन भासा के परति मोह बाढ़ही अउ बोले म लजाय-सरमाय नही। जब चारो मुड़ा म मनखे ह गरब ले अपन महतारी भासा म गोठियाहीं अउ पढ़ई-लिखई अउ कला साहित्य ह छत्तीसगढ़ी के रंग म रंगही, तभे हमर छत्तीसगढ़ी के खुसबू ह बगरही।

 लेखक 
 गौतम गणपत
 रायपुर

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