*गाते रहना वतन के गीत*
गर चाहो,
जनम-जनम जाए बीत, भारत माँ के आँगन में
गाते रहना वतन के गीत, मन के आँगन में
हिय रखना तिरंगा तू मीत ! आखिरी स्पंदन में
ब्रह्मनाद “ओम्" यहाँ, आदिज्ञान है
ज्ञान - विज्ञान पुंज वेद - पुराण है
जीना-जीने देना सिखाया वर्धमान है
शिकागो में पाठ पढ़ाया हिन्दुस्तान है
वसुधैव कुटुंब कामना होती अर्घ्य-आचमन में
गाते रहना वतन के गीत, मन के आँगन में
शिवा में भारत भरा जीजाबाई ने
ममता की बलि दे दी पन्नाधाय ने
लोहे के चने चबवाई लक्ष्मीबाई ने
सत्य-अहिंसा पढ़ाई पुतलीबाई ने
रीत-नीत पढ़ातीं माताएँ लोरी गीत गुंजन में
गाते रहना वतन के गीत, मन के आँगन में
”रंग दे बसन्ती“ गाते कुर्बानी हुई
आज़ादी सरफ़रोशों की दीवानी हुई
अंग्रेजों को चूड़ी पहनाने मर्दानी हुई
शत्रुओं ने दाद दी ऐसी जवानी हुई
माटी का मान सिखाती हैं माताएँ अंजन में
गाते रहना वतन के गीत, मन के आँगन में
दिल में गंगोत्री, मुख से गंगा हो
भाई-चारा बहे सदा, सब चंगा हो
वतन में कोई भी न भूखा-नंगा हो
काल-कलुष के सीने गडा तिरंगा हो
भारत-भारती गूँजे अखिल विश्व अर्चन में
गाते रहना वतन के गीत, मन के आँगन में
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लोकनाथ साहू ललकार
दुर्ग
9981442332
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