लोककला मंच का हसंता मुस्कुराता नाम हैं-सुदेश यादव



छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास मे लोककथा,लोकनृत्य, लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण भूमिका है तो वही लोककला में हास्य रूपी पात्र का होना अति आवश्यक है।और यदि यह माना जाए तो इस पात्र के बिना कोई भी प्रस्तुति या प्रदर्शनअधूरा  है,चाहे वह नाटय विधा हो,लोककला हो या फिर चटरंगी इन्द्र धनुष से सजी चलचित्र फिल्म की पटकथा, ये सारी सामजस्यता हास्य दर्पण से जुड़ी है।आज हम बात कर रहे है हास्य विधा से जुड़े संस्कारधानी की जान.पहचान और हास्य अभिनय का गुमान.. श्री सुदेश यादव जी से जिन्होंने अपनी हास्य विधा से अपना एक अलग मुकाम हासिल किया।जन्म स्थल -बालोद व कर्मस्थल राजनांदगांव से अपनी का आरंभ करने वाले इस कलाकार का जन्म 20 जुलाई सन् 1963 को हुआ।


कलाक्षेत्र में संस्था निर्माण व लोककला मंचो में सहभागिता....

श्री सुदेश यादव बचपन से ही कलाक्षेत्र के लिये आकर्षित थे।इस कलायात्रा के दौरान इन्होंने कई उतार चढाव देखें, लेकिन अपनो और परायो से हार ना मानकर सदैव तत्परता के साथ आगे बढतें रहे।श्री सुदेश यादव ने मन में लोककला के लिए आदर्श लिए अपने गुरु सखा स्वं ललित हेडाऊ के साथ सुर-श्रृंगार नामक संस्था का निर्माण किया।तत्पश्चात इन्होंने सुर-सरोजनी नामक लोक सांस्कृतिक संस्था को नई दिशा प्रदान की जो आज भी अपनी सशक्त प्रस्तुतिकरण से देश राज्यों और प्रदेशों में अपना परचम लहरा रही हैं।श्री यादव को कला विरासत अपने आसपास ही मिली लेकिन मन की व्याकुलता और कुछ करने कि कसक ने इन्हें स्थिर कर दिया।समानांतर इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय थियेटर निर्देशक स्वं हबीब तनवीर जी के साथ 6महीने काम करने का अवसर मिला।तनवीर साहब के निर्देशन विधा और स्वंय की प्रतिभा और हास्य विधा के आधार पर इन्होंने लोकमंचो की ओर रुख किया।जिनमें प्रमुख मंच स्वं,खुमानलाल जी साव कृत चंदैनी-गोंदा श्रीमती कविता वासनिक कृत अनुराग-धारा व छत्तीसगढ़ की नारी व्याथा स्वं रामचन्द्र देशमुख द्वारा निर्देशित व पंडित रामह्दय तिवारी द्वारा लिखित"कारी" इत्यादि मंचो में अपनी कला का प्रदर्शन किया।

सामाजिक व कला योगदान.....

श्री सुदेश यादव ने अपनी कला यात्रा के दौरान समाज में आयोजित विभिन्न आयोजनों मे बढ चढ कर हिस्सा लेते है।इनके उल्लेखनीय कार्य व योगदान के लिए समाज ने इन्हें कई बार पुरुष्कृत किया है।वहीं शासन की जन कल्याणकारी योजनाओं के तहत 5000 से अधिक नुक्कड़ नाटकों की प्रस्तुति प्रदेशो और राज्यों में दी।साथ ही विगत30/35 वर्षो से स्वंतंत्रता दिवस, गंणतंत्र दिवस व शाला के विभिन्न प्रतियोगिताओं में कुशल लोकनृत्य निर्देशन के साथ अव्वल स्थानो पर अपना मुकाम हासिल किया।

पारिवारिक जीवन...

कहते है कि दुनियाँ का सबसे कठिन काम होता हैं किसी को हंसाना और इसी काम को बखूबी निभा रहे है सुदेश यादव जी जिनका छोटा सा पारिवारिक आशियाना हैं जिसमें पत्नी श्रीमती कल्याणी यादव,पुत्री-ऐश्वर्या यादव व पुत्र-मयंक यादव इनको हर परिस्थिति में सहर्ष सहयोग प्रदान करते।इनकी अभिनय कला की अभिलाषा को सार्थक रूप देते हुए पुत्री ऐश्वर्या व मयंक यादव भी अपनी सेवा इस क्षेत्र में दे रहे है।

कुछ करने की ललक...

श्री सुदेश यादव वर्तमान पीढी को नया मार्गदर्शन देना चाहते है लेकिन बदलते हालात को देखकर स्तब्ध और खामोश हो जाते है।उनका कहना है कि आज का युवा एक या दो मंचो की तालियों को सुनकर लाजमी कलाकार बन जाता हैं जो सही नहीं है।युवाओं को वाहवाही को दरकिनार कर निरंतर अपने कला अभ्यास का प्रयास करते रहना चाहिए तथा विषम परिस्थितियों में भी कलाकार चकाचौध की वाल्व लाईट से अपने आप को संम्हाल सके।श्री सुदेश यादव ने लोककला यात्रा के दौरान जिस तरह से दर्शकों को गुदगुदाया है,हंसाया और मानसिक तनाव को दूर भगाया है।आपके इस अतुलनीय सेवा के लिए नगर व अचंल के समस्त कलाकार आपको साधुवाद देते है।

        रवि रंगारी
     ( ब्यूरो चीफ)
    लोककला दर्पण
       राजनांदगांव
   मो.9302675768
Attachments area

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ