संपादकीय : छत्तीसगढ़ का इतिहास राममय रहा है



भगवान राम ने अपने वनवास काल के दौरान छत्तीसगढ़ में बिताए हैं। उस काल में छत्तीसगढ़ को दंडकारण्य के नाम से जाना जाता था। हमारे धार्मिक ग्रंथ रामायण में भी दंडकारण्य का उल्लेख मिलता है। यहां हम इसी दौरान भगवान राम के राजिम में बिताए क्षणों को स्मरण कर रहे हैं। राजिम को धर्म नगरी और लोक कला संस्कृति का गढ़ कहा जाता है। राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी का पवित्र संगम स्थल त्रिवेणी है। इसी त्रिवेणी संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर परिसर से लगी सीताबाड़ी है। कुलेश्वर महादेव के संबंध में किवदंती है कि 14 वर्ष के वनवास काल में माता सीता ने संगम स्थल में स्नान कर अपने कुल देवता की नदी के रेत से विग्रह बनाकर पूजा अर्चना की थी। इसी कारण उनका नाम कुलेश्वर महादेव पड़ा है। कुलेश्वर महादेव मंदिर के समीप लोमश ऋषि का आश्रम है। इसी स्थल के समीप एक माह तक लोग कल्पवास करते हैं। राजिम क्षेत्र को छत्तीसगढ़ की पंचकोशी परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है। पंचकोशी परिक्रमा में 5 स्वयंभू शिवलिंग की लोग साधना पूर्वक परिक्रमा करते हैं, जिनमें कुलेश्वर महादेव- राजिम, पठेश्वर महादेव-पटेवा, चम्पेश्वर महादेव-चंपारण, फणिकेश्वर महादेव-फिंगेश्वर और कोपेश्वर महादेव कोपरा में है। राजिम पुरातत्वों एवं प्राचीन स•यता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भगवान श्री राजीव लोचन की भव्य प्रतिमा स्थापित है। सीताबाड़ी में उत्खन्न कार्य किया रहा है। जिसमें सम्राट अशोक के काल का विष्णु मंदिर, मौर्य कालीन अवशेष, 14वीं शताब्दी का स्वर्ण सिक्का, अनेक मूर्तियाँ और सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी अनेक कलाकृतियां मिल रही है। कहा जाता है कि राम वन गमन के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र सीता और भाई लक्ष्मण के साथ लोमश ऋषि आश्रम में ठहरे थे। वे पंचकोशी धाम के स्थलों से भी गुजरे थे। वनवास काल में राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा-अर्चना की थी। त्रिवेणी संगम राजिम की पहचान पहले से ही आस्था, धर्म और संस्कृति नगरी के रूप में स्थापित हैं। राजिम नगरी की धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यता है। ऐसे अनेक सांस्कृतिक और धार्मिक विरासतों के छत्तीसगढ़ को चिंहाकित लगातार प्रकाशन लोक कला दर्पण के अंकों में करने का प्रयास किया जा रहा है। आप पाठकों और साहित्यकारों का स्नेह लगातार मिलने लगा है। आगे भी इसी तरह सहयोग की अपेक्षा आपसे बनी रहेगी...इसी आशा के साथ...जय जोहार....।


संपादक

गोविन्द साहू (साव)

लोक कला दर्पण 

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