कलम के सिपाही को 84 वीं पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन है...
प्रेमचन्द जी ने 300 कहानियां , एक दर्जन उपन्यास के साथ ही निबन्धों एवं नाटक के माध्यम से भारतीय जनता में जनजागृति फैलाई. फलस्वरूप सोजे वतन संग्रह अंग्रेज सरकार ने जब्त भी कर लिया. वे एक यथार्थवादी के साथ ही आदर्शोन्मुख साहित्यकार थे.
उन्होंने एक ओर जहां अंग्रेज़ी शासन की गलत नीतियों,भ्रष्टाचार,जुल्म का विरोध किया तो दूसरी ओर भारतीय जनता में व्याप्त विभिन्न विसंगतियों वर्ण व्यवस्था के नाम दलितों, पिछड़ों का शोषण, स्त्रियों पर अत्याचार, बाल विवाह पर करारा प्रहार, किसानों एवं मजदूरों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण कर शोषण का पूरी शिद्दत एवं ईमानदारी से प्रतिकार किया है.
उन्होंने पूस की रात, सवा सेर गेहूँ,एवं उपन्यास गोदान के माध्यम से भारतीय कृषक के संघर्षमय जीवन का कटु चित्रण कर महाजनी व्यवस्था पर कटाक्ष किया है. किसान परिवार के विघटन का मार्मिक चित्रण किए हैं. कर्ज में डूबे की त्रासदी का मर्मान्तक चित्रण कर शोषक वर्ग का काला चिट्ठा खोल कर रख देते हैं. इन रचनाओं के माध्यम से वे सरकार को किसानों को उचित दाम दिलाने, कर्ज से मुक्त करने की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं. वे किसानों में चेतना जागृत करते हैं.
मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी विभिन्न कहानियों लांछन, बेटों वाली विधवा, बूढ़ी काकी, और पंच परमेश्वर के माध्यम से भारतीय स्त्रियों की दुर्दशा और सामाजिक स्थिति का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है. इन कहानियों के माध्यम से वे सामाजिक चेतना जागृत करते हैं कि औरत को मात्र उपभोग की वस्तु ना समझें. उनको में परिवार एवं समाज में उचित मान सम्मान मिलें. उन्होंने शसक्त नारी पात्र को गढ़ कर तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था पर करारा प्रहार कर एक सामाजिक क्रान्ति लाने का एक भागीरथ प्रयास किया. नमक का दरोगा कहानी के माध्यम से वे शासन एवं समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का पोल खोल कर एक भ्रष्टाचारी का हृदय परिवर्तन करते हैं. उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ते है. प्रेमचन्द जी संदेश देते हैं कि " पैसा बहुत कुछ है परन्तु सब कुछ नहीं ".
वर्तमान में जब चहुंओर भ्रष्टाचार चरमसीमा पर है प्रेमचन्द की कहानियां बहुत ही प्रासंगिक नजर आते हैं. वहीं उन्होंने ठाकुर का कुआँ, घासवाली,बाबा जी का भोग कहानी के माध्यम से दलित, शोषित लोगों का यथार्थ चित्रण किया है. उच्च वर्ग किस तरह अपनी दबंगाई एवं चतुराई से दलितों का शोषण करते थे उनका कटु चित्रण किया है. वर्तमान में भी यही स्थिति है. हाथरस सहित और घटनाएं इसका प्रमाण है. और अपनी राजनीति रोटी सेंकने के लिए इस देश के नेतागण इस वर्ण व्यवस्था को हमेशा हरा भरा रखना चाहते हैं .प्रेमचन्द ने अपनी लेखनी के माध्यम से जोर शोर से नारियों के शोषण का प्रतिकार कर नारी जागरण का शंखनाद किया.
उनका मानना था कि अन्तत :सत्य की ही विजय होती है. अतएव समाज में व्याप्त रुढ़ियों, कुरीतियों, पाखण्ड,अंधविश्वासों आदि का विनाश होना ही चाहिए. उन्होंने बहुत ही संघर्षमय जीवन व्यतीत किया. आर्थिक कमजोरियों के बावजूद उन्होंने साहित्य के माध्यम से आजादी की लड़ाई को घरु मोर्चे पर डटे रह कर साहित्य के औजारों से आजीवन लड़ते रहे. कलम के सिपाही प्रेमचन्द को उनकी 84 वीं पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि है. शत् शत् नमन है. 



ओमप्रकाश साहू "अंकुर "
हाईस्कूल के पास, सुरगी, राजनांदगांव
0 टिप्पणियाँ
please do not enter any spam link in the comment box.