छ.ग.के प्रमुख तीर्थ अउ पर्यटन केंद्र : रतनपुर-कोटा-बेलगहना



बिलासपुर ले 25 कि.मी. दूरी मं कोरबा-अंबिकापुर मुख्य मार्ग म  "माता महामाया के नगरी रतनपुर" स्थित हवय। रतनपुर ला चारों युग म अलग-अलग नाम से पुकारत रहिन-सतयुग म हीरापुर, त्रेता म मणिपुर,द्वापर म कंचनपुर अउ अब कलजुग म "रतनपुर"के नाम से पूरा भारत देश अउ दुनिया भर म प्रसिद्ध हवय। हैहयवंशी अउ कल्चुरी वंशी राजा के शासनकाल म रतनपुर हा सैंकड़ों साल तक छत्तीसगढ़ के राजधानी रहिसे। सन 1757 म भोसले वंशी राजा द्वारा प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से रायपुर ला उपराजधानी बनाए गईस, कारन-भौसले वंशी राजा"व्यंको जी "नागपुर म रहत रहिसे, ओकर सूबेदार ह रायपुर अउ रतनपुर म रहिके लगान वसूल करत रहिसे अउ राजा ला देवत रहिसे भौसले वंशी शासनकाल 1818 तक रहिसे। धार्मिक, ऐतिहासिक,प्रशासनिक, पुरातात्विक अउ पर्यटन के दृष्टिकोण से रतनपुर ला छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ भूमि माने गए हवंय ेइहां माता महामाया के मंदिर म दुनो नवरात्रि म देश-विदेश के श्रद्धालुजन द्वारा हजारों घृत ज्योति अउ तेल ज्योति जलाए जाथे, इहां अतका ज्योति कलश हमर देश अउ दुनिया में कहीं नइ रहै।



रतनपुर म माता महामाया के अलावा सिद्ध भैरव बाबा मंदिर, लखनीदेवी मंदिर, गिरजाबंद सिद्ध हनुमान मंदिर, सिद्ध गायत्री पीठ, सिद्ध राधा-माधव मंदिर, सिद्ध विनायक मंदिर, सिद्ध बुढ़ा महादेव मंदिर, सिद्ध जगन्नाथ-लक्ष्मीनारायण मंदिर, के साथ-साथ लगभग"छै आगर छै कोरी अर्थात १२६ तालाबअउ मंदिर हवंय, तभे "रतनपुर ला तालाबों-मंदिरों के नगरी कहे जाथे। इहां दुपहिया-चारपहिया वाहन ले भ्रमण करे मं दिन भर मं भ्रमण करना मुश्किल हो जाथे, कहूं दर्शनार्थियों द्वारा इहां के हर मंदिर के प्रात:कालीन अउ संध्या आरती में सम्मिलित होना चाहैं, तब कई दिनों के समय देना पड़ही, तब यात्री मन के ठहरे बर इहां कोई समस्या नइ होवय,महामाया स्थित धर्मशाला म सैकड़ों यात्री मन के ठहरे बर सर्वसुविधा उपलब्ध हवय।

पौराणिक कथा अनुसार रतनपुर हा राजा मोरध्वज के नगरी रहिसे,एक बार प्रसिद्ध धनुर्धर महान वीर अर्जुन ला स्वयं ला भगवान श्री कृष्ण के सबले बड़े भक्त होय के घमंड हो गे,तब भगवान श्री कृष्ण जी हा अर्जुन के घमंड ला नाश करे बर राजा मोरध्वज के यहां परीक्षा लेहे बर आईंन,स्वयं ब्राम्हण भेष अउ अर्जुन ला बालक रूप में आ के राजा मोरध्वज ला कहिन-"हमर शेर भूख से मरत हवय,जब तैं अपन बेटा "ताम्रध्वज"ला अपन रानी"कुमुदावती"के साथ मिल के आरा ले चीर के दान करबे,तऊन ला खा के हमर शेर के जान बाचही! तब राजा मोरध्वज ह भगवान श्री कृष्ण/अर्जुन के शर्त अनुसार अपन एकमात्र बेटा"ताम्रध्वज"ला सपत्निक आरा में चीर के दान करे रहिन,फेर भगवान हा प्रसन्न हो के "ताम्रध्वज"ला पुन: जीवित कर देहिनअउ अर्जुन के मन में उत्पन्न सब ले बड़े भक्त होय के घमंड ला नाश करिन, अत्तेक बड़े बेमिसाल अउ महत्तम के पावन-तीर्थभूमि ये रतनपुर आय।

जब मैं पाटन कालेज म कार्यरत रहेंव,तब 1998 म कालेज के छात्र-छात्रा मन ला भौगोलिक भ्रमण कराए बर "रतनपुर" लाए रहेंव अउ यात्रा संस्मरण लिखे रहेंव, तऊन आज भी सुरक्षित हवंय, अत्तेक महत्तम भरे अनुपम तीर्थ भूमि रतनपुर के वर्णन करना "छोटे मुंह बड़ी बात अउ" सूर्य ला दीपक दिखाना जैसे हो जाही, साथ ही अत्तेक महत्वपूर्ण तीर्थ भूमि अउ अद्वितीय दानवीर नगरी "रतनपुर" के यात्रा संस्मरण लिखे मं एक बहुत बड़े ग्रंथ बन जाही।

पर्यटन केंद्र करगी रोड कोटा बिलासपुर-लोरमी मार्ग म लगभग ३५ कि.मी.दूरी मं स्थित हवय करगी रोड कोटा, बिलासपुर-कटनी रेलवे मार्ग म चौथा स्टेशन पड़ते ये करगी रोड कोटा हा। रेल्वे स्टेशन के पास ही ऊपर भाग म एक बहुत बड़े तालाब हवय-कोटसागर अउ ए तालाब पार मं एक अत्यंत प्राचीन / ऐतिहासिक मंदिर हवय-कोटेश्वर महादेव के, एकरे नाम से ये नगर के नाम होईस-कोटा। कोटा ले 04 कि.मी.दूरी सल्का नवागांव के पास एक धार्मिक, ऐतिहासिक पहाड़ हवय-तऊन ला "दलहा पहाड़ कहिथैं एक अउ "दलहा पहाड़" अकलतरा (जांजगीर चांपा जिला) मं हवय। अकलतरा के पास वाला "दलहा पहाड़" मं नागपंचमी के दिन विशाल मेला भराथे, तईसनेच कोटा के पास वाले "दलहा पहाड़"मं मकर संक्रान्ति ले एक सप्ताह तक विशाल मेला भराथे।

"दलहा पहाड़" के संबंध म हमर नानपन के सुरता आथे, जब हमर आंखी म "सलौनी घाव" हो जावत रहिसे,तौ हमर डोकरी दाई हा कहत रहिसे-"दलहा पहाड़ ला अइसे कहिके जीबरा दे के मोर आंखी के सलौनी बड़े अउ दलहा पहाड़ छोटे कहिबे,तौ तोर सलौनी मिटा जाही, कभी कभी ये बात हा सिरतोन भी लगत रहिसे,एकर असली कारन ये रहिस-"दलहा पहाड़ मं एक सिद्ध महात्मा लगभग ५०-६० साल तक अखंड तपस्या करत रहिसे, ओ संत महात्मा के नाम रहिसे- "बाला  जी महराज "ओ हा ये दलहा पहाड़ के सब ले ऊपर चोटी लगभग १००० फीट अउ दुर्गम जघा म जा के तपस्या करत रहिसे, ओकरे तप बल के प्रभाव ले अउ दलहा पहाड़ के सर्वोच्च चोटी मं भगवान भोलेनाथ के कृपा दृष्टि ले जऊन भी मनखे दलहा बाबा ले कुछु मन्नत मांगथें,तिंकर मनोकामना पूरा हो जाथे। वो साधु महात्मा हा अपन जीवन भर में दलहा पहाड़ मं तपस्या करते हुए ब्रम्हलीन हो गईस,ओ साधु महात्मा के फोटो के सब श्रद्धालुजन आज भी पूजा करथें।

कोटा से लगे हुए "घोंघा नदी में ब्रिटिश कालीन बांध हवय,तेला "घोंघा डेम अउ कोरी बांध कहे जाथे, प्राकृतिक सौन्दर्य ले भरपूर ये जघा हा पर्यटक के मन ला खूब सुहाथे, सूर्योदय अउ सूर्यास्त के बेरा हा अब्बड़ेच सुहावना लगथे, तेकरे सेती इहां कई ठन छत्तीसगढ़ी फिलिम अउ विडियो एलबम के शूटिंग बर हीरों हिरोइन, कलाकार दल अउ निमार्ता-निर्देशक मन आ के अक्सर विडियो शूटिंग करतेच रहिंथैं। करगी रोड कोटा म पहिली बड़े-बड़े कारखाना, राईस मिल, लकड़ी चिराई मिल, बिड़ी उद्योग कारखाना, माचिस उद्योग कारखाना, जंगली वनोपज-चिरौंजी, लासा, महुवा, अनेक प्रकार के जड़ी बूटी अउ बड़े-बड़े लकड़ी टाल, बांस डिपो बिक्री केंद्र रहिसे, आजकल डां सी.बी.रामन विश्वविद्यालय के नाम से करगी रोड कोटा हा पूरा भारत देश म प्रसिद्ध जगह हो गए हवय, इहां हर प्रकार के पाठ्यक्रम पढ़ाए जाथे,तेकरे सेती हमर देश भर के विद्यार्थी मन पढ़े बर आथैं।

करगी रोड कोटा से २०कि.मी. दूरी बेलगहना म हमर देश भर म प्रसिद्ध "श्री श्री १००८ श्री स्वामी सदानंद महाराज के सिद्ध आश्रम हवय",इहां पहिली स्वामी अनंतानंद महराज हा कई बरसों तक तपस्या करिन,ऊंकर ब्रम्हलीन होय के बाद ये आश्रम म श्री श्री १००८ श्री स्वामी सदानंद महाराज ह कठिन साधना अउ योगबल से इहां "पारद शिव लिंग"के स्थाप ना करिन, ये बात बिल्कुल अकाट्य सत्य आय-"पारद धातु ला को ई मनखे/वैग्यानिक ठोस रूप म बांध नइ सकैं, लेकिन स्वामी जी दुर्लभ जड़ी-बूटियों, 700 ग्राम सोना की अपन दिव्य योगबल से 01 फीट"पारद शिवलिंग"के निर्माण करिन, तौन निरंतर तिल-तिल बढ़ते हुए आज लगभग 4-5 फीट ऊंचा "शिवलिंग हो गए हवय। हमर भारत देश म सिर्फ बद्रीनाथ अउ ये बेलगहना म " पारद शिवलिंग हवय, तौन दुनिया भर म दुर्लभ अउ अनमोल हवय,ये पारद शिवलिंग हा स्वयं सिद्ध अउ साक्षात फलदायी हवय।

लगभग 65-70 साल ले ये आश्रम म निरंतर तपधुनी के आगी जलते हवय, ये आश्रम म कई देवी-देवता अउ महावीर बजरंगबली हा साक्षात फलदायी के रूप म विद्यमान हवय,तभे तो हर साल शरद पूर्णिमा के दिन इहां लाखों सर्दी खांसी अऊ दमा के मरीज मन ये सिद्धआश्रम के प्रसाद रूपी खीर खा के सदा दिन बर स्वस्थ हो जाथै। ये आश्रम म हर साल शरद पूर्णिमा के रात म देश भर के "शास्त्रीय संगीत गायक-वादक कलाकार मन सम्मिलित होथैं, रात भर संगीत प्रस्तुति होते,बड़े सुबह प्रसाद स्वरूप खीर बांटे जाथे, ये आश्रम के शाखा हमर देश के विभिन्न हिस्सा मं लगभग 50-60 जगह विद्यमान हवय। ये किसम से हमर छत्तीसगढ़ म रतनपुर,कोटा,बेलगहना प्रमुख धार्मिक ऐतिहासिक पुरातात्विक अउ तीर्थ भूमि आय, इहां के पर्यटन यात्रा करे मं अनेक दिव्य अनुभूति,सुख-शांति अउ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होथे, इहां के यात्रा करे बर, रात्रिकालीन विश्राम करे बर बड़े-बड़े धरमशाला, रेस्टोरैंट, होटल उपलब्ध हवंय।

गया प्रसाद साहू*

     "रतनपुरिहा"

     *अध्यक्ष*

*छत्तीसगढ़ी साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थान करगी रोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)*


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