मातर विशेष - मातर पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं



छत्तीसगढ़ संस्कृति और परंपराओं की महकती बगिया है यहां के प्रत्येक त्योहारों का अपना अलग ही महत्व है।बारहो महीने मनाए जाने वाले स्थानीय लोक पर्व तीज त्योहारों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश भर में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों जैसे होली ,दीपावली ,दशहरा ,जन्माष्टमी ,रक्षाबंधन आदि को भी यहां उत्साह पूर्वक मनाया जाता है lइन त्योहारों को मनाने की प्रक्रिया में छत्तीसगढ़ का अपना मौलिक रूप होता हैl एकता भाईचारे की भावना ऊंच-नीच छोटे-बड़े जात-पात के भेदभाव से दूर आपसी प्रेम व्यवहार और पारिवारिक संबंधों में मधुरता स्पष्ट झलकता है lलोक संस्कृति लोक जीवन की धरोहर होती है lऐसा कोई महीना नहीं है जिसमें लोक पर्व ना हो हमारा छत्तीसगढ़ तीज त्योहारों पर्वों उत्सवों का गढ़ है ।तीज त्यौहारहमारी संस्कृति का गुणगान करती हमारे जीवन में उमंग उल्लास भरती है। ऐसा ही एक पर्व है मातार  दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और गोवर्धन पूजा के दूसरे दिन मातर पर्व  बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है ।इसी दिन भाई दूज का त्यौहार भी होता है ।मातर मतलब माताओं का पर्व ,देखा जाए तो यह त्यौहार गाय चराने वाले यादवों का प्रमुख पर्व है। लेकिन गांव में सभी लोग मिलजुलकर हंसी खुशी के साथ मनाते हैं ग्राम डाभा 


के रंगी यादव ने बताया कि मातार के दिन सुबह और रउत और रौताइन अपने अपने घर द्वार को स्वच्छ रखते हैं। यादव समाज के लोग सूर्योदय के पहले अपने देवता का पूजा पाठ व हूम  देते हैं ।तत्पश्चात बाजे गाजे मोहरी दफड़ा के साथ घर से दोहा लगाते
पूजा करे पुजेरी भइया ,अउ धोवा चंउर चढ़ाय।
पूजा परत हे मोर देवता के, लइया छोर मताय।।
कुकरी लेबे ते चिगरी देवता ,अउ लेबे लहू के धार 
मे तो जात होरे मातर मे,तोला लगे घर के भार।।
 इस प्रकार दोहा लगाते नाचते कूदते गोठान  या सहाड़ा जाते हैं ।साथ में गांव के लोग भी जाते हैं । वहां खोडहर गडाया जाता है ।इसके बाद यादव लोग नाचते कूदते दोहा लगाते गांव के कंधई मडई को लाने जाते हैं कंधई मडई को सहडा  में बांध दिया जाता है ।गायों भैंसों का पूजा पाठ कर सोहाई बांधा जाता है। जब सोहाई  बांधा जाता है वह समय यह दोहा बोलते हैं ।
नंदबाबा बाबा के नौ लाख गइया अउ गली म दूध  दुहाय।
 दूध दही के पूरा बोहाय रे  लेवना  के पार बंधाये ।।

मातर के दिन कम्हडा  ढुलाने का अपना अलग ही  महत्त्व है।गायो व  भैंसों के खुरो से कुम्हड़ा फोडते हैं। घासी
 यादव ने बताया कि जब खीर का प्रसाद बनाया जाता है तो उसमें कुछ कुम्हडा  भी मिलाया जाता है।
इसके बिना प्रसाद नही बनता हैं।
मातर के दिन यादव लोग घोती,जूता ,मोजा और मोजे के ऊपर घुघरु पहनता हैं,पगडी बांधता हैंऔर पगड़ी में कलगी खोचता हैं ।हाथ में रंग बिरंगी सजी हुई लाठी पकड़ता हैं।इस दिन नये कपड़ा धारण करता हैं।इस कारण बेहद आकर्षण का केन्द्र बना रहता है।लाठी यादवो के शौर्य का प्रतीक हैं।
वाद्य यंत्र बजता हैं और यादव लोग नाचते _कूदते हैं।अरे र..र..ऱ..शब्दो के आवाज से वाद्य यंत्र बंद हो जाता हैं ।
इसके बाद अरे र..र..र कहने वाले यादव दोहा लगाते है।
देवा ले महादेवा बड़े ,अउ बीरा में हनुमान ।
भक्तन बड़े अजुन रे ,रथ हाके   भगवान  ।।
फिर नाचते है।
जिस भी यादवो को दोहा लगाना होता है उसे पहले अरे र..ऱ..र कहना पड़ता हैं।फ़िर दोहा लगाता है। इस प्रकार दोहा का दौर चलता रहता हैं।

जय महमाई मोहबा के ,अखड़ा के गुरु बैताल ।
चौसठ जोगनी पुरखा के ,पूजा म लगे सहाय।।
गाय गरु के सेवा करके ,किसान से लेबो धान ।
पहली सुमरिहां कान्हा ल,दसर म मालिक किसान।।

मथुरा गोकुल वृदावन के ,धूर अबड़ पबरीत होय ।
उड उड परै शरीर म ,बाढ़य मया पिरीत   हो। ।
लंका के रावण मरे,मथुरा के कंश ।
साधु संत के निंदा करे ,ओखर नई बाचे बंश।।
एप पार नदी ओपार नदी ,बीच म खोरी गाय।
ठाकुर बिचारा सुते ल भुलागे ,बेदरा दुंहे गाय।।

आज कल मातर का कार्यक्रम वृहद रुप लेता जा रहा हैं।कई कई गांवो में भव्य अखाडा भी होता है।
रात में सांस्कृतिक कार्यकुम का आयोजन भी होता है।

ग्रामीण लोग बड़े उमंग ,उत्साह के साथ कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी देते है।यह कार्यक्रम दिनभर चलता रहता है।उत्सव के समापन के समय खीर प्रसाद का वितरण किया जाता है





भोलाराम सिन्हा गुरुजी
ग्राम _डाभा 
मगरलोड ,जिला- धमतरी
मो०न9165640803

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