संपादकीय - छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी नरवा ,गरुवा , घुरुवा , बारी



काँग्रेस की सरकार ने पशुओं की सुरक्षा और पशुपालकों को रोजगार के साथ साथ उनकी आमदनी को बढ़ाने में मदद करने के लिए गोधन-न्याय योजना का शुभारंम्भ छत्तीसगढ़ में मनाई जाने वाली हरेली त्योहार के दिन से किया है। इस योजना का उदेश्य पशुओं की सुरक्षा करना तथा पशुपालन की घटती दर को पुन: बढ़ाना, उनकी सुरक्षा और उसके माध्यम से पशुपालकों को आर्थिक रूप से ला पहुंचाना है। छत्तीसगढ़ राज्य में गौ-पालन को आर्थिक रूप से लादायी बनाने तथा खुले में चराई की रोकथाम तथा सड़कों एवं शहरों में जहां-तहां आवारा घूमते पशुओं के प्रबंधन एवं पर्यावरण की रक्षा के लिए राज्य में गोधन न्याय योजना शुरू करने का एलान किया है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने बीते डेढ़ सालों में छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के माध्यम से राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने चारों चिन्हारियों को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। गांवों में पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौठानों का निर्माण किया गया है। राज्य के 2200 गांवों में गौठानों का निर्माण हो चुका है और 2800 गांवों में गौठानों का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले दो-तीन महीने में लग5 हजार गांवों में गौठान बन जाएंगे। इन गौठानों को हम आजीविका केन्द्र के रूप में विकसित कर रहे हैं। यहां बड़ी मात्रा में वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण भी महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से शुरू किया गया है। इस योजना के अंतर्गत सरकार गोपालकों से गोबर खरीद कर उसे वर्मी काम्पोस्ट में बदलेगी जो किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होता है। गोधन न्याय योजना राज्य के पशुपालकों के आर्थिक हितों के संरक्षण की एक अभिनव योजना साबित होगी। पशुपालकों से गोबर क्रय करने के लिए दर निर्धारित की गई है। यह योजना राज्य में अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगी और इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इसके माध्यम से गांवों में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

छत्तीसगढ़ राज्य में खुले में चराई की परंपरा रही है। इससे पशुओं के साथ-साथ किसानों की फसलों का भी नुकसान होता है। शहरों में आवारा घूमने वाले मवेशियों से सड़क दुर्घटनाएं होती है, जिससे जान-माल दोनों का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि गाय पालक दूध निकालने के बाद उन्हें खुले में छोड़ देते हैं। यह स्थिति इस योजना के लागू होने के बाद से पूरी तरह बदल जाएगी। पशु पालक अपने पशुओं के चारे-पानी का प्रबंध करने के साथ-साथ उन्हें बांधकर रखेंगे, ताकि उन्हें गोबर मिल सके, जिसे वह बेचकर आर्थिक ला प्राप्त कर सके।  शहरों में आवारा घूमते पशुओं की रोकथाम, गोबर क्रय से लेकर इसके जरिए वर्मी खाद के उत्पादन तक की पूरी व्यवस्था नगरीय प्रशासन करेगा। गोबर की खरीदी गौठान समितियों के माध्यम से की जाएगी। पशु पालकों से खरीदी गई गोबर से वर्मी कंपोस्ट तैयार कर आठ रुपये प्रति किलो की दर से विभिन्न सरकारी विभागों व अन्य को बेचा जाएगा।

आयुर्वेद के अनुसार गाय के गोबर का बहुत महत्व है। गाय का गोबर कई चीजों को बनाने के काम आता है। गाय के गोबर से अच्छी कमाई कर सकते हैं। गाय के गोबर से कागज बनाने का कारोबार शुरू करने के साथ ही कई मूल्यवर्धित वस्तुएं जैसे- गमला, लक्ष्मी-गणेश, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर गाने वाली अगरबत्ती, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैण्ड आदि आसानी से बनाए जा सकते हैं। गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु व मच्छर भाग जाते हैं और दुर्गंध का नाश हो जाता है। आज व्यवसाय के लिहाज से देखा जाए तो गोबर से काफी अच्छा आय का मार्ग साबित हो सकता है।

राज्य के 2200 गांवों में गौठान का निर्माण हो चुका है। इसके साथ ही 2800 गांव में गौठान का निर्माण किया जा रहा है। आने वाले दो-तीन महीने में गांव के गौठानों में वृद्धि देखी जा सकती है। ग्रामीणों के लिए गौठानों को आजीविका केन्द्र के रूप में विकसित करने का लक्ष्य शासन के माध्यम से होने लगा है। यहां बड़ी मात्रा में वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण भी महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से शुरू किया गया है। गोबर प्रबंधन की दिशा में प्रयास करने वाली छत्तीसगढ़ देश की पहली सरकार है। आने वाले समय में सरकार गोमूत्र खरीदने पर भी विचार कर सकती है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। सरकार चाहती है कि प्रदेश जैविक खेती की तरफ आगे बढ़े, फसलों की गुणवत्ता में सुधार हो, इसलिए किसानों से गोबर खरीदने का फैसला किया गया है. किसानों से गोबर खरीदने की दर के निर्धारण के लिए कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय मंत्री मण्डलीय उप समिति गठित की गई है। इतना ही नहीं वित्तीय प्रबंधन एवं वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन से लेकर उसके विक्रय तक की प्रक्रिया के निर्धारण के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में प्रमुख सचिव एवं उप सचिव की एक समिति गठित की गई है तथा किसानों, पशुपालकों एवं बुद्धिजीवियों से राज्य में गोबर खरीदी के दर निर्धारण के संबंध में सुझाव भी आमंत्रित किए गए थे।

हमारी छत्तीसगढ़ की संस्कृति में भी गोबर का बहुत महत्व है। शु कार्यो में आंगन की लिपाई, पूजा के लिए गौरी-गणेश का निर्माण, तथा गोवर्धन बदने के लिए पवित्र गोबर का उपयोग किया जाता है। अत: हम लोग गोबर के इस उपयोग और महत्व को बनाए रखने के लिए अपना योगदान देने में किसी प्रकार की कमी न करें।

जय जोहार...       


संपादक

गोविन्द साहू (साव)

लोक कला दर्पण  

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