राममय है हमारा अंचल रामायण पाठ और प्रतियोगिता इनके प्रमाण हैं



अंचल के विशेष स्थान पर हैं रामनामी संप्रदाय


छत्तीसगढ़ में एक रामनामी पंथ है जो एक विशेष इलाके में निवास करते हैं। यहां बच्चे से लेकर रामनाम का गोदना पूरे शरीर में अंकित कराते हैं। वर्तमान में नई पीढ़ी अब इस परंपरा से दूर होने लगी है। रामनामी पंथ का गवान राम में अटूट विश्वास है। वे राम को ही अपना सब कुछ मानते हैं। इनकी कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे-ये मंदिर में पूजा नहीं करते, पीले वस्त्र धारण नहीं करते, माथे पर टीका भी नहीं लगाते और मूर्ति पूजा में भी यकीन नहीं करते। यहां तक कि इनके घरों में, दीवारों पर, दरवाजे-खिड़कियों पर राम नाम लिखे दिख जाएंगे। यह परंपरा कब से शुरू हुई है इसकी निश्चित का आकलन लगाना तो कठिन है पर सैकड़ों वर्षो से यह पंरपरा यहां देखी जा रही है।

वर्तमान का असर

यहां के निवासी बताते हैं कि अब शरीर में राम नाम लिखवाने के बाद स्कूलों में एडमिशन नहीं मिलता। नौकरी नहीं मिलती। ऐसे में नई पीढ़ी के ज्यादातर लोग अब इस परंपरा को नहीं अपना रही हैं। पहले यहां के अधिकांश लोग अयोध्या अपनी आस्था प्रकट करने जाते थे। वहां से आने पर अपने आपको राममय कर लेते थे। इनका यह भी विश्वास है कि शरीर में अंकित राम नाम मरने के बाद स्वर्ग में हमारी पहचान बनकर जाता है और इससे हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मान्यताएं

राम नाम से जुड़ी कई प्रचलन व मान्यताएं यहां देखने को मिलती है जिसमें माना जाता है कि एक बार नदी में नाव फंस गई थी। राम नाम का गान हुआ तो जान बच गई और राम नाम लिखवाना शुरू हो गया। इसी तरह एक अन्य मान्यता के अनुसार इन्हें ब्राह्मण मंदिर में नहीं जाने देते थे। ऐसे में लोगों ने राम नाम लिखवाना शुरू कर दिया और कण-कण में राम को देखने लगे। तब से यह अपने शरीर को ही मंदिर मानते हैं। कहते भी राम हैं, लिखते भी राम हैं, सोचते भी राम हैं।

क्या कहते हैं अब यह लोग

यहां के निवासी बताते हैं कि रामनामी संप्रदाय में अब 400 से 500 लोग ही हैं। एक गांव के लोग बताते हैं कि 1890 के आसपास रामनामी संप्रदाय की स्थापना की थी। इस संप्रदाय के लोग मिलनसार और रामनामी पंथ के बारे में पूछने पर अपनी सारी कथा को एक सांस में कहने को तैयार हो जाते हैं।आज भी रामनामी घुंघरू बजाकर जन गाते हैं। कई लोग मोर पंखों से बना मुकुट पहनते हैं। हर साल बड़े जन कार्यक्रम करते हैं। इसमें जैतखांब (खंभो) बनाए जाते हैं, जिन पर राम नाम लिखा होता है और इन्हीं के बीच में बैठकर ये लोग राम का जन करते हैं। जन करते समय ये लोग विशेष लय में घुंघरू बजाते हुए झूमते हैं। गवान राम की क्ति, जन और गुणगान ही इन लोगों की जिंदगी का मकसद है। लेकिन धीरे धीरे यह प्रथा अब समाप्त होती जा रही है। नई पीढ़ी अब अपने हिसाब से फैशन को अपनाने लगी है जो भी आज भी राम के प्रति इस अंचल में जो लगाव है वह अदभूत है।

 

 

लेखिका

                                                       श्रीमती सीमा साहू

 

                                                                                                                   

                                                  

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