संपादकीय - नवा बछर सब बर सुखमय हो



संगी हो बीते बछर के अनुभव काकरो बर बने नी होइस। सबे मनखे बीते बछर ल कोसत हवय। हमु मन कोसत हन। अइसन दिन हमन ल कभु देखे बर झन मिलय अइसे भगवान ले विनती करत हन। कोनो मनखे अउ कोनो सियान मन ह आज तक कभु नी किहिन कि अइसन बेरा कभु देखे रेहेन। लोगन मन के जीना घर ले बाहिर निकलना दूभर होगे। सरी बेवसथा चरमरा गे। फेर हमन ल मनखे के दूनों पक्ष म सकारात्मक पक्ष ला घलो सोचना चाही। आखिर अइसन होइस येकर बर कोन ह दोसी हे। सही मायने म हमी मन दोसी हन। हमन ल अब सीख लेना चाही कि कम से कम अवैय्या दू दिन बछर म नून चटनी संग चाऊर बिसाय के लइक पइसा जोड़ के रखन। प्रकृति संग खिलवाड़ झन करन। जैविक खातू के उपयोग अपन खानपान म करन। योग व्यायाम ल अपन जिनगी म हत्व देवन। फल फूल के उपयोग जादा ले जादा करन। बासी जिनिस ल खाय ले परहेज करन। नसा पानी ले दूरिहा रहन। चिंता कमती अउ चिंतन जादा करन। अइसन कतको अकन छोटे छोटे बात हे तेनला अपन जिनगी म उतार के हमन अपन जिनगी के बिपत के बेरा ले आसानी ले जूझ सकत हन। त आवव अपन जिनगी ल सुघ्घर बनाय के नवा बछर म परन करन...जय जोहार...।



 गोविंद साहू (साव)
संपादक
लोक कला दर्पण 
contact - 9981098720

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