छत्तीसगढ़ हर अति प्राचीन काल से अलग-अलग जति, धर्म अउ संस्कृति के समन्वय भूमि बने हवय। प्रागैतिहासिक काल से, जब मानव सभ्यता के विकास नइ होए रहिस, इहांॅ मनखे मन के बासा के पता चलथे। रायगढ़ के पास कबरा पहाड़ अउ सिंघनपुर के गुफा म पाए जाने वाला भित्ति-चित्र मन एकर प्रमाण हवयंॅ। वैदिक साहित्य म छत्तीसगढ़ से संबंधित कुछु जानकारी के प्रमाण तो नइ मिले हे, लेकिन उत्तर वैदिक काल के ग्रंथ मन म एकर जगह-जगह उल्लेख होए हे। वैवस्वत मनु के चौथी पीढ़ी राजा हैहय होए रहिस, जेला वीत हव्य घलउ कहैं। एकरे वंश के राजा मन इहॉ लंबा समय तक राज करिन अउ छत्तीसगढ़ के विस्तार करिन। महाभारत के युद्ध म भाग लेहे बर इहांॅ के जनताजीय सेना मन घलउ गए रहिन। इंॅकर अलग-अलग सैन्य दल रहिस। कहूंॅ कौरव मन कती ले लड़िन त कहॅू पांडव मन कती ले। कौरव मन कती ले लड़इया आदिवासी मन कोरवा कहाइन। एही मन के नाम से आज कोरबा नगर बसे हवय। रतनपुर के राजा मोरध्वज अउ ओकर अहंकारी पुत्र ताम्रध्वज के कथा घर-घर म सुने जाथे। रामायण काल के अनेक प्रमुख घटना मन इहें घटे रहिन। ओ समय म छत्तीसगढ़ हर दक्षिण कोसल के नाम से जाने जात रहिस। माता कौसल्या इहें के बेटी रहिस। खुद बाल्मीकि के आश्रम हर कसडोल के पास तुरतुरिया गाँव म रहिस बताथें। बाल्मीकि रामायण म राम के बनवास के खबर पा के माता कौसल्या बिलाप करत हिरदय के तुलना वर्षाकाल के महानदी से करे हवयः
स्थिर न हृदय मन्ये ममेदं यन्न दीयति।
प्रावृषीव महानद्या स्पृष्टं कलं नवाभ्यसा।
प्राचीन काल म इहांॅ अनेक राजवंश-नंद, मौर्य, शुंग, वाकाटक, नल, पांडु, शरभपुरीय, सोम, कलचुरि, नाग, गोंड़, अउ मराठा मन पारी-पारी राज करत गइन अउ इहें के माटी-पानी म रच-बस गइन। एकरे सेती इहांॅ भांॅत-भांॅत के जाति, धर्म अउ सम्प्रदाय मन फलिन-फूलिन। महर्षि मतंग, सुतीक्ष्ण, सरभंग सब इहें अपन आश्रम बना के रहिन अउ वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार करिन। बौद्ध धर्माचार्य अउ नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति बोधिसत्व नागार्जुन के कर्म-भूमि सिरपुर ल माने जाथे। तब इहांॅ सौ से भी जादा बौद्ध विहार अउ दसो हजार से जादा बौद्ध भिक्षु मन रहिन। मल्हार, सिरपुर अउ आरंग बौध्द धर्म के प्रमुख केन्द्र रहिन। एकरे संगे-संग जैन धर्म हर घलउ फलिस-फूलिस।
महाकवि कालिदास अपन प्रथम ग्रंथ ऋतु संहार के रचना इहें करे रहिन बताथें। उंॅकर मेघदूत म अमर कंटक के शोभा के आम्र कटक के रुप म मनोहारी वर्णन होए हे। अमरकंटक ला प्राचीन काल से ही पवित्र तीर्थ स्थान माने जाथे। आद्य शंकराचार्य ल इहें ज्ञान-प्राप्ति होए रहिस बताथें। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य छत्तीसगढ़ के पश्चिमी छोर म स्थित चम्पाझर या चम्पारण्य म वि.सं. 1535 म जनम ले रहिन। कुल मिला के भारतीय संस्कृति के अनेकता म एकता के विशेषता अउ बहुरंगी छटा हर छत्तीसगढ़ म देखे ल मिलथे। हैहयवंशी राजा मन के काल से इहांॅ 36 ठन गढ़ रहिस। 18 गढ़ शिवनाथ नदी के उत्तर म पुराना रतनपुर परिक्षेत्र म, अउ 18 गढ़ दक्षिण म पुराना रायपुर परिक्षेत्र म। लेकिन सन 1905 म दू ठन गढ़ संबलपुर अउ कालाहांडी उड़ीसा म मिलगें। एक ठन गढ़ कुटकुटी हर अब मध्य प्रदेश के शहडोल जिला म परथे। अउ एक ठन गढ़ सुअरमार के पते नइ चले हे। मतलब, वर्तमान छत्तीसगढ़ म अब बत्तीसे गढ़ रहि गैहें।
छत्तीसगढ़ नाम के प्रथम प्रयोग सन 1487 म खैरागढ़ राज्य के चारण कवि दलराम राव हर अपन राजा लक्ष्मी निधि मिश्र के स्तुति म करे रहिस। एकर बाद रतनपुर राज कवि गोपाल मिश्र द्वारा सन1689 म लिखे खूब तमाशा म छत्तीसगढ़ नाम हर देखे बर मिलथे। एक लंबा अंतराल के बाद सन 1839 म रतनपुर के ही कवि बाबू रेवाराम कायस्थ के लिखे विक्रम विलास म छत्तीसगढ़ नाम हर फेर देखे बर मिलथे। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक ए नाम हर पूरा-पूरा व्यवहार म आए लगिस। ओइसे इतिहास के विभिन्न कालक्रम म छोटे-मोटे भौगोलिक परिवर्तन के साथ एकर अलग-अलग नाम-महाकांतार, मणिपुर राज्य, रतनपुर राज्य, दण्डकारण्य चलत रहिस। मध्य युग म एला गोंड़वाना घलउ कहत रहिन।
छत्तीसगढ़ के मूल आदिवासी गोंड़, माड़िया, मुरिया, तेलंगा, दोरजा, उरॉव, मुंडा, कोल, कोर्कू, कोरवा, खड़िया, हलबा, भतरा, बैगा, बिंझवार, पंडो, कमार आदि जनजाति अउ गिरिजन मन ल माने जाथे। एमन के जातीय बोली हर द्रविड़ भाषा परिवार से संबंध रखथे, जबकि छत्तीसगढ़ी बोली हर भारोपीय भाषा परिवार से विकसित होए हे। हालांकि द्रविड़ भाषा परिवार के बोली मन से मिल के एकर कई रुप बन गए हे। डॉ. ग्रियर्सन हर अपन लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया म छत्तीसगढ़ी बोली के सात रुप के वर्णन करे हे। छत्तीसगढ़ी या लरिया, खल्हारी, सरगुजिहा, सादरी-कोरवा, बैगानी, बिंझवारी, कलगा अउ मुलिया। ग्रियर्सन छत्तीसगढ़ी बोली म मराठी के अधिक प्रभाव बताथें, जबकि प्रो. सुनीति कुमार चटर्जी मागधी के प्रभाव ल स्वीकार करे हावैं। बोल-चाल म अवधी अउ बघेली मन एकर बहिनी जइसे लागथें। एकरे सेती छत्तीसगढ़ी लोकगीत, लोकगाथा अउ साहित्य म हिन्दी परिवार के ए बोली मन के जबरदस्त प्रभाव देखे बर मिलथे। आज से हजार साल पहली से छत्तीसगढ़ी लोकगायक मन के परंपरा अहिमन रानी, केवला रानी अउ रेवा रानी के कथा-गायन म चले आवत हे। रामायण अउ महाभारत के कथा मन ल घलउ अही लोक गायक मन प्रस्तुत करत रहिन। फूल कुॅवर, ढोला-मारू, लोरिक चंदा, नगेसर कइना अउ रहस जइसे कतको लोक गाथा मन जन-जन म लोकप्रिय होगे। आजादी के बाद लोकमंचीय कला के खूब विकास होइस। पंडवानी, चनैनी, भरथरी, बॉस-गीत, आल्हा, शैला, करमा, गोपी-चंदा, नाचा, शाल-नाचा, बार-नाचा, सुआ-गीत से जुड़े कलाकार मन दूर देहात अउ जंगल से निकल-निकल के अपन लोक-कला के प्रदर्शन करे लगिन। छत्तीसगढ़ के आधुनिक लोक-मंच ल दाउ रामचंद्र देशमुख, हबीब तनवीर, दाऊ दुलार सिंह साव, मदरा जी मन अपन लगातार प्रयास से समृद्ध बनाइन अउ छत्तीसगढ़ नर्तक देवदास बंजारे, पंडवानी गायिका तीजन बाई, भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे, नाचा कलाकार भुलुवा राम अउ ठाकुर राम जइसे लोक कलाकार मन छत्तीसगढ़ी लोक-कला मन ल अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाइन। अब नवा पीढ़ी के कलाकार मन एला आगे बढ़ाए के काम म लगे हवयंॅ।
छत्तीसगढ़ म लोक चित्रकला के परंपरा घलउ हर बहुत पुराना हे। इहांॅ प्रागैतिहासिक काल से ही भीत्ति-चित्र अउ गुफा-चित्र मिलथे। गांव मन म आजो भीत्ति-चित्र बनाए के परम्परा हे। लोक चित्रकार सोना बाई रजवार तो विदेश जा के अपन कला के धाक जमा आए हे। छत्तीसगढ़ म चउक, रंगोली, मेंहदी, गोदना अउ धार्मिक सामाजिक अवसर म बनाए जाने वाला आकृति मन म घलउ लोक चित्रकला के अभिव्यक्ति होथे। वास्तु-कला अउ मूर्ति-कला के क्षेत्र म घलउ छत्तीसगढ़ म खूब विकास होइस। इहांॅ बौद्ध-जैन काल, गुप्त काल, कल्चुरी काल, मराठा अउ अंग्रेज मन के समय के ऐतिहासिक अवशेष विद्यमान हे। राजिम ल छत्तीसगढ़ के प्रयाग माने जाथे। इहांॅ कुलेश्वर महादेव, राजीव लोचन, राजेश्वर मंदिर दर्शनीय हवय।
राजीव लोचन मंदिर अपन विशालता अउ शिल्पगत प्रौढ़ता के कारण प्राचीन स्थापत्य के उदाहरण प्रस्तुत करथे। आरंग ल तो मंदिर मन के नगरी कथें। इहांॅ के प्रमुख दर्शनीय मंदिर हावैं भांड देवल, बाघ देवल, दन्तेश्वरी अउ जैन मंदिर। रतनपुर म महामाया के मंदिर हर बहुत प्राचीन ए। स्थापत्य के दृष्टि से बीस दुआरी मंदिर, बादल महल अउ भैरव द्वार के विशेष महत्व हे। शिवरीनारायण म चंद्रचुरेश्वर मंदिर दर्शनीय हे। एकरे पास म ग्राम खरौद म अति प्राचीन लक्ष्मणेश्वर मंदिर इतिहास के धरोहर माने जाथे। मल्हार तो मूर्ति कला के विशेष केंद्र बन गए रहिस। इहांॅ उत्खनन से मिले देउरी, डिंडनेश्वरी अउ चतुर्भुज भगवान विष्णु के मूर्ति के अलावा वैष्णव, शैव अउ जैन प्रतिमा मन दर्शनीय हवयंॅ। बारसूर घलउ हर मंदिर मन के नगरी कहलाथे। इहां 11वीं-12वीं शताब्दी के चंदादित्य, देवरली, मामा-भांचा अउ बत्तीसा मंदिर स्थापत्य कला के सुन्दर नमूना के रुप म देखे बर मिलथे। प्राचीन काल म दक्षिण कोशल के राजधानी रहे सिरपुर म 6 वीं शताब्दी म चीनी यात्री व्हेनसांग पहॅुचे रहिस। इहांॅ आनंद प्रभुु कुटी विहार, लक्ष्मण मंदिर, गंधेश्वर मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, स्वास्तिक विहार अउ चंडी मंदिर ह देखे के लाइक हे। भोरम देव ल छत्तीसगढ़ के खजुराहो कहे जाथे। भोरम देव मंदिर पर्वत श्रेणी मन के बीच घाटी म बने हावै। मंदिर के बाहरी दिवाल म हाथी, घोड़ा, नटराज, गणेश, अउ स्त्री-पुरुष मन के मिथुन मूर्ति देखे बर मिलथे। मड़वा महल के बाहरी दीवाल म भी मिथुन मूर्ति बने हुए हे। भीख खोज (खल्लारी) के मंदिर पहाड़ म स्थित हावै। एही पहाड़ी के नीचे लाक्षागृह के अवशेष बताए जाथे जहांॅ दुर्योधन अउ शकुनी मन पांडव मन ल मारे के षड्यंत्र रचे रहिन। ताला गांॅव म भी उत्खनन म देवरानी-जेठानी के अलावा भगवान शंकर के विशाल मूर्ति प्राप्त होए हे। छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से विख्यात मैनपाट हर हरियाली से ढंॅके 3500 फीट के ऊंॅचाई म स्थित हे। इहाँ के दो बडे़ बौद्ध मठ मन देखे के लाइक हें। चित्रकूट के जल प्रपात बस्तर म परथे। इहाँ इंद्रावती नदी हर 29 फीट के ऊंचाई ले गिर के सुन्दर जल प्रपात के दृश्य बनाथे। इहें पासे म कुटुमसर के गुफा मन भी देखे लाइक हें। छत्तीसगढ़ के भुइयॉ हर श्री, सुषमा, पुरा-संपदा से भरपूर हे। जरूरत हे एला प्रकाश म ला के एक संरक्षण अउ संवर्धन करे के। जहांॅ तक छत्तीसगढ़ी काव्य के विकास के प्रश्न हे, एमा कबीर दास के शिष्य मन विशेष योगदान करे हवयंॅ। ओमन अपन निर्गुण मत के प्रचार-प्रसार ल छत्तीसगढ़ी कविता म करे हवयंॅ। एकर बाद सतनाम पंथ के प्रवर्तक घासीदास के आदर्श के प्रसार करे के खातिर पंथी नृत्य अउ गीत के प्रचलन होइस। 17 वीं शताब्दी के अंत म रतनपुर के राज कवि गोपाल चंद्र मिश्र हर राम प्रताप नामक काव्य के रचना शुरू करिस जेला ओकर पुत्र माखन चंद्र मिश्र हर पूरा करिस। एमा छत्तीसगढ़ी बोली के स्पष्ट प्रभाव हे। सारंगढ़ निवासी प्रहलाद दुबे के रचना जय चंद्रिका म छत्तीसगढ़ी के प्राकृत रुप हर देखे बर मिलथे।
बीसवीं सदी के शुरूआत म धमतरी के पं. हीरालाल उपाध्याय हर छत्तीसगढ़ी भाषा के व्याकरण तइयार करे रहिन जेमा पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय संशोधन करिन अउ डॉक्टर ग्रियर्सन एकर अंग्रेजी अनुवाद करिन। सन 1903-04 के लगभग शिवरीनारायण के शुकलाल प्रसाद पाण्डेय तो शेक्सपियर के कॉमेडी ऑव एरर्स के छत्तीसगढ़ी म भूल-भुलइया के नाम से अनुवाद करे रहिन। छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि तुलसी गांॅव के नरसिंह दास वैष्णव ल माने जाथे अउ ओकर काव्यकृति शिवायन ल छत्तीसगढ़ी के प्रथम ग्रंथ। ओइसे कुछ साहित्यकार मन पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय ल छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि मानथें। ओइसे उंॅकर एक हिन्दी कविता म छत्तीसगढ़ी के कुछ पंक्ति ही मिलथे। पंडित जी हर कालिदास के मेघदूत के छत्तीसगढ़ी म अनुवाद करे रहिन। लेकिन डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि पं. सुन्दर लाल शर्मा ल मानथें। शर्मा जी के खण्ड-काव्य दानलीला म सन 1916 के आस-पास छत्तीसगढ़ी के शुद्ध रूप हर देखे बर मिलथे। एकर बाद सन 1926 म कपिल नाथ मिश्र के खुसरा चिरइ के बिहाव, सन 1938 म गिरवर दास वैष्णव के छत्तीसगढ़ी सुराज, सन 1940 म पुरषोत्तम लाल के कॉग्रेस आल्हा किसन लाल ढोठे के लड़ाई के जीत, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र के कुछू काहीं आदि ग्रंथ मन प्रकाशित होइन।
आधुनिक छत्तीसगढ़ी साहित्य म युगानुरूप विधागत अउ विषयगत विविधता के दर्शन होथे। कपिलनाथ कश्यप, लाला जगदलपुरी, हरिठाकुर, विमल कुमार पाठक, विनय कुमार पाठक, लखन लाल गुप्त, श्याम लाल चतुर्वेदी, दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिहा, रामेश्वर वैष्णव, केयूर भूषण, परदेशी राम वर्मा, रवि श्रीवास्तव, विद्याभूषण मिश्र, कोदूराम दलित, जीवन यदु, बिसंभर मरहा, आदि अनेकानेक नवा-पुराना साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी साहित्य के श्री-वृद्धि करे म लगे हुए हवयंॅ। छत्तीसगढ़ी हर राजभाषा बन गए हे, पर एमा राज-काज नइ हो पावत हे। राजभाषा के तैयारी करे बर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग हर पछुवा जावत हे। एकरे सेती छत्तीसगढ़ी ल संविधान के अष्टम अनुसूची म प्रमुख भारतीय भाषा के दर्जा नइ मिल पावत हे। आशा हे, छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के प्रतिभा अउ मेहनत से ओ दिन हर हमन ल जल्दी देखे बर मिलही। देश के सबे च प्रान्त के मनखे मन इहांॅ करत-खावत हवयंॅ। राजनीति, शासन-प्रशासन सबे म उन फलत-फूलत हवयंॅ। सब अपन रीति-रिवाज, तिहार-बार ल छुछिंदहा मनावत रथें। काकरो बर रोक-टोक नइ ए। आने प्रान्त मन म अइसनहा देखे बर नइ मिलै। तभे तो एला सब ले शांत प्रदेश कथें। इहांॅ अवइया मन जाए के नाव नइ लेवैं। समोखन हवय हमर छत्तीसगढ़।
लेखक
कामेश्वर पाण्डेय
बी- ,आदर्श नगर,
कुसमुंडा,कोरबा
मो-8959193470
0 टिप्पणियाँ
please do not enter any spam link in the comment box.