हमारी संस्कृति के संरक्षण का सराहनीय पहल



असीमित संभावनाओं के द्वार खोलता राम वनगमन परिपथ 

आलेख

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार द्वारा घोषित राम वनगमन परिपथ नि:संदेह पर्यटन और पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संभावनाओं वाला साबित होगा। "सिया राम मय सब जग जानी" तुलसी कृत रामचरित मानस के ये पंक्तियां छत्तीसगढ़, भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में चरितार्थ हो रही है। ऐसे समय मे जब हिंदुस्तान के रग रग, कण कण में बसे प्रभू श्री राम की बहुप्रतीक्षित राम मंदिर का शिलान्यास भूमिपूजन 492 साल के लंबे इंतजार के बाद 5 अगस्त 2020 को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के करकमलों से शानदार तरीके से सम्पन्न हुआ, उन्हीं दिनों में छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया विद्वान मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी द्वारा छत्तीसगढ़ में प्रभू राम के वनवास काल के विचरण और निवास स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा से सब आल्हादित हुए हैं।

प्रामाणिक ग्रंथों के अनुसार प्रभू राम अपने वनवास कालखंड में मध्यप्रदेश के चित्रकूट के बाद छत्तीसगढ़ के सरगुजा में कोरिया जिला स्थित सीतामढ़ी हरचौका आये। प्रदेश के लग75 चिन्हांकित जगहों में से प्रथम चरण में 9 स्थानों को हर दृष्टि से विकसित करने की योजना बनी है। इसकी शुरूआत रायपुर जिले से 27 किलोमीटर दूर ग्राम चंद्रखुरी से हो रही है। पूरी दुनिया में केवल चंद्रखुरी में ही प्रभू श्रीराम के माता कौशल्या देवी का सुंदर मंदिर है। इस मंदिर में गवान राम बाल रूप में माँ के गोद में बैठे हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार मन्नूलाल यदु रायपुर द्वारा शोधित ग्रंथ "दंडकारण्य रामायण" में बताया गया है कि दंडकारण्य में छत्तीसगढ़ का भू भाग शामिल था। छत्तीसगढ़ दक्षिण कोशल कहलाता था। इसे उत्तर से दक्षिण भाग को जोड़ने वाला दक्षिणा पथ भी कहा जाता है। कोशल देश के राजा भानुमंत रायपुर जिले के आरंग में रहते थे, उनकी पुत्री भानुमति राजा दशरथ  से शादी होने के बाद कौशल्या (कोशलिया) कहलाई।

छत्तीसगढ़ के प्रथम चरण में नौ चयनित स्थान सीतामढ़ी हरचौका, रामगढ़, शिवरीनारायण तुरतुरिया (वाल्मीकि आश्रम), चंद्रखुरी, राजिम (लोमश ऋषि आश्रम), सिहावा (सप्तऋषि आश्रम), जगदलपुर, रामाराम और सिरपुर को पर्यटन सर्किट से जोड़कर लग528 किलोमीटर मार्ग के दोनों किनारों पर औषधीय पौधे अर्जुन (कऊहा), नीम, आंवला, पीपल, बरगद, आम, करंज, हर्रा, बहेरा, महुवा, खम्हार, साल, दहिमन आदि के तथा फूलदार पौधे लगाकर प्रभू श्रीराम के वनवास के समय के वनदृश्यों के आभास कराने का प्रयास किया जा रहा है। पूरे मार्ग पर लगग डेढ़ लाख पौधों का रोपण किया जा रहा है। प्रदेश के सभी वन अभ्यारण्य, सेंचुरी को इस वनगमन सर्किट से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे छत्तीसगढ़ में पर्यटन क्षेत्र को अधिक बढ़ावा मिल सके। औषधीय पौधे लगने से दोहरा फायदा मिलेगा। औषधि के साथ ही पर्यावरण संरक्षण का भी काम होगा।

राम वनगमन परिपथ में शामिल सभी नौ जगहों पर प्रवेश द्वार, इंटरप्रिटेशन सेंटर, कैफेटेरिया, आकर्षक साईन बोर्ड, प्रतीक चिन्ह लोगो, यज्ञशाला, योग केंद्र, मेडिटेशन सेंटर, प्रवचन केंद्र, धर्मशाला बनाने की बात है। मुख्य मार्ग सहित उपमार्ग की लंबाई लग2260 किलोमीटर में संकेतक, विभिन्न जातियों के पौधों का रोपण वनवास का अहसास करायेगा। इन सभी निर्माण कार्य के बन जाने के बाद निश्चित रूप से देशी विदेशी पर्यटकों की संख्या में आशातीत वृद्धि होगी। लोगों को छत्तीसगढ़ को जानने समझने का अवसर मिलेगा। अनेक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। विकास के नये क्षेत्र बनेंगे जहाँ अनेकों संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। लोगों को माता सबरी के बेर खाने को मिलेंगे तो तुरतुरिया में लवकुश के जन्म स्थान को देखने का सौभाग्य मिलेगा। प्राचीन अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र सिरपुर में उत्खनन से प्राप्त अद्भुत धरोहर के साथ माता कौशल्या देवी के मंदिर का दर्शन ला मिलेगा। उम्मीद है कि इस योजना से जुड़ी जन-जन की भावनाएं, सोच, नीयत और इसका क्रियान्वयन भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सदृश मर्यादित रहेगी।

 

लेखक                                 

रामेश्वर गुप्ता,

बिलासपुर


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