शरद पूर्णिमा पर कवि /साहित्यकार ने मनाई वाल्मीकि जयंती



मां शारदे, भगवान श्री कृष्ण सहित पूजे गये रामायण महाकाव्य के रचायिता ।

राजनांदगांव । शरद पूर्णिमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ी साहित्य सृजन समिति द्वारा ज्योतिष  कार्यालय (ममता नगर) में ज्ञान की देवी सरस्वती (शारदे) व सोलह कलाओ के स्वामी भगवान श्री कृष्ण सहित विश्वचर्चित महाकाव्य रामायण के रचायिता महर्षि वाल्मीकि की पूजा कर काव्य प्रवाह के साथ  शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया गया। ज्योतिषाचार्य एवं साहित्यकार पं. सरोज द्विवेद्वी की अध्यक्षता में आयोजित उक्त कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाज सेवी अशोक चौधरी जी थे । समिति के अध्यक्ष आत्माराम कोशा “अमात्य“ उपाध्यक्ष गिरीश ठक्कर स्वर्गीय कवि शैलेष गुप्ता युनुस “अजनबी“ कृष्ण सोनी “कटाक्ष“ दीपक श्रीवास्तव अवनि मिश्रा आदि की उपस्थिति में महाकाव्य के रचायिता महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए कहा गया कि संसार की सबसे पहली कविता इस ऋषि के मुंह से फूटी थी । महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण ने विश्व के बड़े - बड़े विद्वानो को न सिर्फ प्रभावित किया अपितु संसार के लोगो को भगवान श्री राम की मर्यादा, भातृ प्रेम, पितृ आज्ञा का पालन सहित उनके गरीब नवाज छवि से बहुत कुछ सीखने को मिला। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की राम राज्य की कल्पना के अनुसार सर्व हित व लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था बनाने की दिशा में सरकारे भी अभिप्रेरित रही । ज्योतिषाचार्य द्विवेद्वी ने कहा कि संसार के आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी को मिथुन रत क्रौंच पक्षी की व्याघ्र द्वारा तीर मारकर हत्या किये जाने से इतना अघात लगा कि तमसा नदी के किनारे प्रकृतिक सुषमा का आनंद ले रहे महर्षि जी के मुंह से संस्कृत में “मा निषाद प्रतिष्ठातम, महति शास्वति सम, यत्र क्रौचम मिथुना देकम, अवधि काम मोहिता“ जैसी संवेदना जन्य कविता फूट पड़ी । मुख्य अतिथि श्री चौधरी ने कहा कि  महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखे उक्त महाकाव्य को गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधि लोक भाषा में रचनाकर इतनी सर -सहज व  गुनग्राहय बनाया कि श्री रामचरित मानस गं्रथ विश्व चर्चित हो गया  । इस पर कामिल बुल्के सहित अनेक देशी और विदेशी विद्वानो ने शोध किया व ग्रंथ लिखे है।



समिति के अध्यक्ष श्री कोशा ने शरद पूर्णिमा पर वीणा वादिनी मां शारदे की चरणो में नमन करते हुए आदि कवि वाल्मीकि जी को इन शब्दो में याद किया - की राम कथा की लिखाई, वह भी एक रत्ना है/ तुलसी की प्रेरणा दायी वह भी एक रत्ना है ..../फर्क यह था कि वह थे  विश्व का आदि कवि , रामायण जिसकी रचना है । वास्तुचार्य शैलेष गुप्ता ने बताया कि महर्षि वाल्मीकि पहले रत्नाकार नामक डाकू थे जो नारद मुनि का सान्निध्य पाकर महऋषि हो गये । इसे आगे बढ़ाते हुए कवि गिरीश ठक्कर ने सठ सुघरत संत संगत पाई की बात कहते हुए रामकथा केे चितेरे महर्षि वाल्मीकि सहित संत कवि तुलसीदास को नमन किया। 
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के प्रांतीय अध्यक्ष डा. जे आर सोनी के निर्देश पर छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति- जिला इकाई (राजनांदगांव) का पुनर्गठन किया गया । अंत में सभी उपस्थित जनो को धन्यवाद व आशीर्वाद प्रदान करते हुए आचार्य सरोज द्विवेद्वी ने बताया कि शरद पूर्णिमा की वही महत्वपूर्ण रात है जिस रात सोलह कलाओ के स्वामी योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन में गोपियो के साथ महारास रचाई थी । यह रात अपनी पूर्ण ज्योत्सना के साथ चन्द्रमा धरती पर अमृत बरसाता है  ।

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