माटी के दाई बर हरियर लुगरा अऊ।
डारा पाना हरियर होवय तन झन उघरा।
सोनहा धाने के बाली गहना झन होवय खाली।
देख मोर छत्तीसगढ़ सब करय दिन रात चारी।
कांदी कचरा लुके गरवा ल खवाबो।
गोबर लेवईया छत्तीसगढ़ हम कहाबो।
एसो के हरेली म इतिहास बनाबो।
सावन के झुला म महतारी ल झुलाबो।।
माटी के दाई बर...........
मया के डेरउठी म सब सुख पावय भारी।
झन होवय कोंहो ल कांहिच बीमारी।
रबी खरीब सबे बोबो उपजाबोन उन्हारी।
छलकत रही धान कटोरा बने रही चिन्हारी।
नई होवय पराया बेटी, दाई कोंख ले उपजारीन।
हरेली के रोटी धर के ददा लाही तिजहारीन।।
माटी के दाई बर.......
नांगर जुड़ा के करबोन हरेली म पुजा।
माटी घलो दाई ददा हे नई मानन दूजा।
मेहनत ले खेती करके सुरुज नवा उजा।
छत्तीसगढ़ के करिया बेटा हिरदे सब के छु जा।
माटी के दाई बर हरियर लुगरा अऊ।
डारा पाना हरियर होवय तन झन उघरा।।
दुर्गेश सिन्हा "दुलरवा"
दुर्रे बंजारी (छुरिया)
राजनांदगांव
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