नानकिन किस्सा :
// बेलनारोटी //
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सियनहीन बोधनी ह अपन सियान दुलारसिंग के भरोसा घर ल छोंड़के अपन बहु-बेटा करा कोरबा सहर आइस । बेटा जगदीश ह इहाँ एकठन बिजली कम्पनी मं सुपरवाइजर रिहिस । बहु-बेटा अउ नाती-नतनीन के मया मं किसिम-किसिम के जिनीस जोर के एकठिन खातुबोरी मं धर के आय राहै ।
रतिहा बोधनी हर बेटा अउ नाती-नतनीन संग जेय बर बइठिस । बहू मालती ह सब झन ल पोरसीस । पहिली अपन आदमी अउ लइका मन ल दु-दू चार-चार ठिन रोटी दीस । दार अउ चीखना अलग । बोधनी के आगू मं दारभात मढ़ाइस । मालती ल सुरता राहय की पिछले बखत ये आय रिहिस त पतला गहूँरोटी के खाय ले येखर पेट बिगड़े रिहिस । मनमाड़े झार देये रिहिस । इलाज-पानी मं खरचा करवाय रिहिस । वोहर इही सोंचके कि डोकरी गतर के हर कभू खाय हे कि नी खाय हे तइसे खाथय ; अपन पेट-मुँड़ ल नइ जानय , परखै । असल मं बोधनी ल गहूँरोटी देये के मालती के मन नइ राहै । सियनहीन बोधनी के इहाँ अवई मालती ल बड़ अखरत राहै ।
सबझन मन लगा के खावत राहैं ; फेर बोधनी के मन ह राहय की एकाठिन बेलनारोटी देतिस ते खा लेतेंव । वो अपन गाँव-घर मं चीला , फरा , मुठिया , अंगाकर , पानरोटी खावै । पर आज वोखर मन ह बेलनारोटी खाय बर ललचावत राहय , एकाठिन देतिस ते खा लेतेंव कहिके ; पर का करबे , बेलनारोटी वोखर किस्मत मं नइ राहै , नोहर होगे राहै वोला । मालती हर तो बोधनी ल बेलनारोटी नइ देये के भीसम परतिग्या करे राहै ।
बपरी सियनहीन बोधनी के मन नइच् मानिस त कहिथय - " मालती ,.एकठिन महुँला बेलनारोटी देतेस का ओ... । खाय ला भावत हे । मोला बनाय बर नइ आय ओ , का करबे मोर ले टेड़गा-बेड़गा हो जथै ; नहिं ते चूल्हा आगी मं जर जथै । "
" मालती हर " नहिं... नहिं... नहीं तुमन ल अग्रवाल डाक्टर ह गहूँरोटी खाय बर बिल्कुल मना करे हे । तुँहर लीवर कमजोर होगे हे , बताय हे । तुमन नइ पचा सकव । अउ रोटी मं घींव घलो चुपराय हे । तेल्हा-फुल्हा ह बइरी तुँहर मन बर...बनेच् बेकार कर ही तुमन ला..." काहत मुहूँ ला बेलनारोटी असन फुलोय रँधनीकुरिया मं निंगीस ।
बिचारी बोधनी ह पर के रीस ल पर मं झारत मने-मन कुरबुराइस - " हत् रे रोगहा अगरवाल डाक्टर गतर के । "
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@ टीकेश्वर सिन्हा " गब्दीवाला "
घोटिया-बालोद.
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