जिवलेवा घाम जरय
जेठ बइसाख के।
बटोहिया रे अगौर लेते ना।
मन के मिलौना छोड़े
जिनगी अधूरा होगें।
काँच सही दरके सुपना
छिन मा चूरा होगें
कोनो नइ अधारा अब
थके साँस के।। बटोहिया---
सेम्हर के फूल जइसे
सुरता खिलौना होगें।
चीन्हे चिन्हारी मुंदरी
जी के जरौना होगे।
धीरजा बँधाये कोन
डहर भूले आस के।। बटोहिया रे -
अधरे अधर म जिनगी
डोर बिन झूलना के।
पीरा उठे रोवे कलप के
पिंजरा के सुगना रे।
मिल जातिस छाँव कहूं
का तोरे पास के। बटोहिया रे --
केदार दुबे।
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