छत्तीसगढ़ी कविता - जुन्ना फसल ल नवा करा


                        
**जुन्ना फसल ल नवा करा**


कोदो दिखय न राहेर संगी, 
न तिवरा, उरीद ओन्हारी। 
अरसी भर्री खार न दिखय, 
न बर्रे, कुसयार बारी।। 

पल्टू परेवा धान नंदागे, 
गुरमटिया, चिनाउर लुचाई। 
हिरवा, पटवा अकरी नंदागे, 
सरसों दिखय न राई।। 

तिल, भुरमूंग के टिकरा नंदागे, 
खाय के तेल कम होगे। 
तेकरे पाय के मिलावट सब म, 
गाँव गाँव बिमारी झपागे।। 

दौरी बेलन घलो नंदागे, 
टेड़ा पाटी बखरी के। 
ढेकी -जाता घलो नंदागे, 
तेल पेरोइया रहटा घानी।। 

बंमरी बीज के मिर्चा लेवन, 
नून, हरदी लासा के। 
अब बंमरी के पेड़ नंदागे, 
कोसा हेरोइया कहुआ साजा के।। 

अंगाकर अउ गुरहा चीला नंदागे, 
नागर बैला अउ तुतारी। 
साल्हो, ददरिया गीत नंदागे, 
गाड़ा जुड़ा अउ बरही।। 

बढ़त हावय अबादी दिन दिन, 
कैसे पुरही एक फसली। 
भात भर में पेट नही भरय, 
चाही दार तरकारी।। 

अब दिन कैसे गुजरही, 
पर भरोसा रहिके। 
जुन्ना फसल ल नवा करव, 
सबो किसान जुरिया के।।


**सुखनन्दन कोल्हापुरे शरारत** रायपुर (छ. ग.)  

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