नव दिन के नवरात म दाई दरस ल तोर पायेंव वो।
रेंगत तोर देवाला दाई डोंगरगढ़ जब आयेंव वो।।
डोंगरी पहाड़ी म बइठे दाई ऊंचा आसन पाये वो।
मन के मनवती लेके दाई सब तोरे सरन म आये वो।।
बिन मांगे सब पाये दाई महिमा तोरे सब गाये वो।
थके हारे मनखे बर दाई उड़न खटोला लगाये वो।।
करके तोर पुजा दाई अंधरा आंखी पाये वो।
खोड़वा रेंगे लागे दाई अऊ कोंदा गुन तो गाये वो।।
कामकन्दला तरिया म दाई मन के पाप धोवाये वो।
चईत अऊ कुंवार म दाई तोर डेहरी म मेला भराये वो।।
जगमग तोर जोत म दाई मन के अंधियारा भगाये वो।
बन के दुर्गा काली दाई बम्लई तिहि कहाये वो।।
दुर्गेश "दुलरवा" सेउक दाई माथ ल अपन नवाये वो।
ये कोरोना के काल म दाई दुलरवा तोर ले गोहराये वो।
रोग-राई मिट जाये दाई अउ सब मनखे सुख पाये वो।
गुन महिमा तोर गजबे दाई "दुलरवा" लिख नई पाये वो।।
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दुर्गेश सिन्हा "दुलरवा"
दुर्रे बंजारी (छुरिया)
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