छत्तीसगढ़ी के निर्माता: पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी ’विप्र’



साहित्यिकी

तिवारी जी के साहित्य हमला रद्दा देखात हे

आज तो छत्तीसगढ़ी हर राजभाषा  बनके कतको ग्यानी -गुनी मन के  गला के मुक्ताहार बन के शोभा पावत हे। फेर तईहा काल म एक समय अइसन रहिस जेमे छत्तीसगढ़ी ल निच्चट तुच्छ अउ  हेय नजर ल देखइया मन देखें। अउ एकर ल बढ़के गोठ वोमे वोमन ल कुछु भी संभावना नजर नइ आय।

छत्तीसगढ़ी के अइसन संकट काल म पँ. द्वारिका प्रसाद तिवारी ’विप्र ’ जी अपन अदभुत प्रतिभा अउ लगन ले छत्तीसगढ़ी ल जन जन म लोकप्रिय बनाईंन अउ वोमे काव्य-साहित्य लिखे के सम्भावना ल साकार करके बताईंन। विप्र जी सच्चा अर्थ म छत्तीसगढ़ी के निर्माता आँय। छत्तीसगढ़ी ल स्थापित करे बर उंकर अपन अलग दर्शन रहिस-अपन छत्तीसगढ़ी भाई मन सो मोर विनती हवै कै अपन भासा म जब तक किसिम किसिम के किताब नई लिखे जाही तब तक हमर साहित्य पीछू च रहही। आज जउन जिनिस ल चीख चीख के कहे जात हे, तउन ल  वो तो बहुत पहिली के कह डारे रहिन।

संक्षिप्त जीवन वृत्त

पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी ’विप्र’ जी के जन्म छत्तीसगढ़ के संस्कारधानी बिलासपुर म एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार म 6 जुलाई सन 1908 म होय रहिस। विप्र जी के पिता पं. नान्हूराम तिवारी अउ माता के नाव देवकी रहिस। विप्र जी, दो भाई और दो बहनों  मन म  मंझला रहिन, इ कारण  ल उनला मंइझला महराज के नाम ले भी मनखे मन चिन्हें। हाई स्कूल तक के शिक्षा बिलासपुर म पईन फिर इम्पीरियल बैंक रायपुर एवं सहकारिता क्षेत्र में काम करत सहकारी बैंक बिलासपुर में प्रबंधक  बनिन।  विप्र जी उच्च स्तरीय सितार वादक घलव रहिन। हाथरस ल प्रकाशित होवइया संगीत की पत्रिका ’काव्य कलाधर’ म सितार ले सिद्ध करे गय उंकर कविता मन मय नोटेसन के प्रकाशित होंवय। नोटेसन खुद विप्र जी तैयार करंय।

कृति

विप्र जी के प्रकाशित कृति-1. कुछू कांही 2. राम अउ केंवट संग्रह 3. कांग्रेस विजय आल्हा 4. शिव-स्तुति 5. गाँधी गीत 6. फागुन गीत 7. डबकत गीत 

8. सुराज गीत 9. क्रांति प्रवेश 10. पंचवर्षीय योजना गीत 11. गोस्वामी तुलसीदास (जीवनी) 12. महाकवि कालिदास कीर्ति 13. छत्तीसगढ़ी साहित्य को डॉ. विनय पाठक की देन।  विप्रजी प्रेम, ॠंगार, देशभक्ति, हास्य व्यंग्य जइसन सब्बो विषय म लिखे हावें।

विप्र जी के काव्य चेतना

विप्र जी के काव्य चेतना म छत्तीसगढ़ अउ इहाँ के किसान मन  पॉप अप हर जगह करत रइथे-

हम गांव ला अपन बढ़ाबोन गा, हम गांव ला अपन बढ़ाबोन गा।

जइसन बनही तइसन ओला, सरग मा सोझ चढ़ाबोन गा।

खेत खार खुबिच कमाके, रंग-रंग अन्न उपजाबोन गा,

अपन देस के भूख मेटाबो, मूड़ी ला उंचा उठाबोन गा।

उपन देस के करब बढ़ोतरी, माई-पिल्ला कमाबोन गा,

चला रे भईया चली हमू मन, देस ला अपन बढ़ाबोन गा।

कई किसिम के खुलिस योजना, तेमा हाथ बटाबोन गा।

येकर छोड़ उंकर दूसर अतिलोकप्रिय गीत ल देखव-

धन धन रे मोर किसान, धन धन रे मोर किसान!

 मैं तो तोला जानेव रे भईया, तैं अस भुइंयाँ के भगवान ......

विप्र जी के सबला जादा प्रसिद्ध पंक्ति  हावें ,वोहर उंकर  धमनी हाट वाला रचना आय-

तोला देखे रेहेंव गा, तोला देखे रेहेंव गा।

धमनी के घाट मा बोईर तरी रे।।

लकर धकर आये जोही, आंखी ला मटकाये गा,

कईसे जादू करे मोला, सुख्खा म रिझाये गा।

चूंदी मा तैं चोंगी खोचे, झूलूप ला बगराये गा,

चकमक अउ सोन मा, तैं चोंगी ला सपचाये गा।

चोंगी पीये बइठे बइठे, माड़ी ला लमाये गा,

घेरी बेरी देखे मोला, हांसी मा लोभये गा।

जात भर ले देखेंव तोला, आंखी ला गडियायेंव गा,

भूले भटके तउने दिन ले, हाट म नई आये गा

आँग्ल साहित्य के ’ रोमांटिसिज्म ’ यानी के स्वछंदतावाद हर ये रचना म चरम सीमा म हे। विप्र जी अवधी अउ खड़ी बोली म घलव बहुत अकन कविता लिखे हांवय।

अध्यात्म भाव

यह संसार बसेरा है सखि

विपदा विवश बसेरा है

बंधा कर्म जीवन में जाने

कितने दिनो का डेरा है।

डाली डाली उड उड करके

विप्र जी के देश भक्ति

हिन्द मेरा वतन, मैं हूँ उसका रतन

इस वतन के लिए जन्म पाया हूँ मैं

इसकी धूलि का कण, मेरा है आवरण

इसकी गोदी में हर क्षण समाया हूँ मैं.

ठीक अइसने 

देवता बन के आए गांधी

देवता बन के आए 

राम कृष्ण अवतार ल जानेन

रावण कंस ल मारिन 

हमर देश के राक्षस मन सों

लड़ -लड़ दुनो उबारिन

चक्र सुदरसन धनुष बान ल

रहिन दुनो जन धारे 

तँय हर सोज्झे मुंह में कहीके

अंग्रेजन ल टारे 

सटका घर के पटकु पहिरे 

चर्चिल ल चमकाए ।

इंकर छोड़ हास्य व्यंग्य के उंकर पोठ रचना मन हें।

छत्तीसगढ़ी के अपन छंद विधान अउ छंद शास्त्र

विप्र जी अपन अभिव्यक्ति बर शास्त्रोक्त छंद के छोड़ देशज छंद मन ल अपनाई न अउ वोला समृद्ध करिन-

1.सुआ छंद-

चला दीदी देखे जाओ झंडा तिरंगा ला सुवा मोर पाय हे देश सुराज।। सुआ मोर...

2. करमा छंद-

चला नाचा गावा गा भइया नाचा गावा रे

अब तो सुराज होगे, नाचा गावा रे 

3. दहँकी छंद-

अब आए हैं सुराज तेला नहीं छोड़ी लाखों मनखे अपन  गंवाएन

साठ बच्छर ले बड़ दुख पाएन

देश के खातिर जीव ल दिहे बर

4. मंडलाही छंद-

अब सुनिहा दीदी हमर एकठन गोठ ओ

अब आए हे घड़ी अलवर पोठ ओ 

लइकन ला अब वीर बनावा 

रोज सुदेसी गीत सुनावा

अब जैहिंद कहत मा 

उघरै सब लइकन के ओंठ ओ

विप्र जी सच्चा अर्थ म छत्तीसगढ़ी के निर्माता रहिन।

विप्र जी के समग्र वांग्मय के अध्ययन विप्र जी के भतीजा अउ छत्तीसगढ़ी के शलाका पुरुष-डा. नन्दकिशोर तिवारी जी के ’ विप्र रचनावली ’ म उतर के स्न्नान करे ले मुक्ता माणिक्य मन मिलहीं।



आलेख

रामनाथ साहू

जांजगीर-चाम्पा

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           

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