आँसो जाड़ अबड़ दवें लगिस।जाड़ के मारे हाथ-पाँव किन-किनाय,पानी करा कस चट ले जनाय ,दिन भर सुर्रा चलय त जुड़ के मारे नाक ह सुरुक -सुरुक बोहाय।सँझा- बिहनिया सब ल भुर्रीच ह सुहाय।तभो ले किन-किनात जाड़ म बबा ह बिहनिया घूमे ल नइ छोड़िस।मुंधरहा पंच बज्जी उठिस,बाहिर-बट्टा निपटिस, हाथ-मुँह धोइस अउ लोटा भर पानी ल गट-गट पीइस।
रोजे बरोबर तियार होके स्वेटर पहिरिस,
कनटोप लगईस,मोजा - जूता पहिर के परछी म साल ल देखिस, खूंटी -अड़गसनी ल खोजिस त साल नइ मिलिस । बिना साल ओढ़े घूमे बर निकलगे ।
गाँव ले बाहिर अइस त जाड़ जादा जनइस, तभो आदत तो परे राहय, तीन किलो मीटर रेंग के अपन ढिहा म पहुँचगे। जुड़ के मारे का करे घेरी-बेरी नाक ल पोंछय । हल्का- फुल्का कसरत करिस। घर लहुटत ले हाथ -पाँव के अंगरी किन -किनावत राहय। हू-हू करत घर अइस त डोकरी दाई अंगना ल बाहरत राहय। बबा ह जाड़ म ठुठरत-ठुठरत डोकरी ल कहिथे- "अरे झपकुन भुर्री बार तो डोकरी। आज जाड़ जादा जनावत हे बिया ह।हाड़ा-हाड़ा काँपत हे,परान नइ बाँचही तइसे लगत हे। आज साल ल खोजेंव,नइ मिलिस त अइसने चल देंव।" बबा के मुँह ले बोली के संगे-संग जाड़ के मारे कुहरा घलो निकलत राहय।
बबा के हालत ल देख ओखर बोली ल सुन के डोकरी दाई ह सकपकाके।कहिथे-"अइ मोर से भारी गलती होगे सियान।
काली जुअर एक झन भजन गवइया सियनहा तमुरा बजावत मांगे बर आय रिहिस,चिथरा-गोंदरा पहिरे जाड़ म काँपत रिहिस।किहिस- दाई मैं जाड़ म मरत हँव, एकाद ठन जुन्ना-पुराना कपड़ा होतिस त देते माई।ओखर हालत ल देख के तुंहर साल ल दे परेंव हो। तुहँला नइ बता पायेंव।मोला माफी देहू बबा।" डोकरी दाई हाथ ल जोर के खड़ा होगे अउ तुरते राहेर काड़ी ल निकाल के भुर्री बारे ल धर लिस।
डोकरी दाई के बात ल सुन के बबा के देंह म भुर्री के आँच भरगे।ओखर सरी जाड़ भगागे ,ओ मन- मगन मुसकियाय लगिस ।कहिथे -" अरे, एमा माफी मांगे के का बात हे बही।तैंहा बने करे। अब भुर्री बारे के जरुरत नइ हे।"
बबा ल लगिस के ओखर शरीर म को जनी कहाँ ले कोलर -कोलर बल आगे।खुशी अउ उमंग के पसर- पसर कुन-कुन आँच समागे हे। बबा ह मया म डोकरी दाई ल गर म पोटार लिस। दूनो के मुस्कई रऊनिया बन के बगरगे। एती सुरुज घलो अंगना म अपन ललहूँ किरन के छरा दे के बबा अउ डोकरी दाई के मन ल दंदकात राहय।
डॉ.पीसी लाल यादव
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