छत्तीसगढ़ का प्रसिद्द लोकगीत *ददरिया*



● आबे बिहनिया खवाहूँ बासी 

   मोर मन के मँजूर तँय बारामासी 

● ए फूलबासन जोहार ले ले
   पिरीत दे दे अपन अउ पियार ले ले

● नाचत रइथे आँखी के पुतरी
   बाँध लेही मुहचारी मया के सुँतरी

● रहि रहि मोला आवत हे हाँसी
   परान  लेही टूरा के जूड़ खाँसी

● पटौंहा मा धरे हावे गुढ़वा
   जिनगी कइसे कटही धनी हे बुढ़वा

● घिसे गुड़ाखू अउ खाय मुरकू
   तोर भाटो के बहिनी हावे टरकू

● चूँदी मा गाथे हावय फुँदरी
   मोर जी ला जरावत हे सोन लुँदरी

● अब्बड़ रिसाथे हावय रोनही
   अपन बस मा करे हे मोला टोनही

● नंदिया तीर मा भुलाय मुँदरी 
   घेरी बेरी लजाय टूरी बेंदरी

● सुघ्घर चेहरा हे रातरानी
   रोज़ जाथे अकारन भरे ला पानी

● मोर बर लाबे तँय रमकेरिया
   मेंहूँ  लाय हँव तोर बर एकतरिया

● नोनी के दाई के हदरासी
   रोक पावँव नइ मोला आवय हाँसी

● आड़ मा ठाढ़े हावय बोकरी 
  सोझ झिन आबे मिलही सासडोकरी

● मोला मोहा डारे हटियारिन
   बन जाते कोनोदिन मोर बनिहारिन

 *डॉ.माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग '* 
क्वार्टर नं.एएस-14, पॉवरसिटी, अयोध्यापुरी,
जमनीपाली, कोरबा (छ.ग.)485450
मो.नं.9424141875 & 7974850694

 *मँजूर* -मयुर। *बारामासी* - सदाबहार फूल, एक प्रकार का 36 गढ़ी गीत जिसे बारहों माह गाया जाता है। *फूलबासन* -फूल की तरह सुंदर।मुहचारी-बातचीत। *जूड़* - ठंडा, शीतल,सर्दी।
 *पटौंहा* - लकड़ी से बनी ऊपर की मंजिल। *गुढ़वा* -रस्सी का बंडल। *मुरकू* -जलेबी के आकार का नमकीन पकवान।
 *टरकू* -चुपचाप हर वक्त खिसकने वाला। *फुँदरी* -चोटी के साथ गाँथने की डोरी, फुँदना। *लुँदरी* -कान का एक आभूषण।
 *एकतरिया* -महिलाओं की जूती। *हदरासी* -पाने के बाद भी किसी वस्तु को पाने की बनी रहने वाली आतुरता। *आड़* -परदा,बीच में। *सासडोकरी* -बूढ़ी सास,पत्नी की माता या पति की दादी माँ। *हटियारिन* - हर बाजार जाने वाली।
 *बनिहारिन* -रेजा,किसी के लिए काम करना।

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