पिरीत के पानी म मया के रंग घोरे,
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।
मया-पिरीत म जग- जिनगी जोरे,
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
नवाँ - नवाँ धरती लागय,
नवाँ लागय रे अगास।
पिकियावय सपना नवाँ,
नवाँ जागय रे पियास।।
मया के रस में हिरदे ल चिभोरे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
रंग - रंग के फुलवा संग,
फुलय मन के आसा ।
कोइली कुहुक बोलय ,
मिसरी घोरे भाखा ।।
इरखा भेदभाव के जाला ल टोरे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
उल्होवय डारा - पाना ,
महमहावय जिनगानी।
मऊर पहिरे आमा कुल्के
नीक मऊहा के जवानी।।
लाली परसा सेम्हरा घमाघम हो रे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
सरा....ररा....सरा....ररा
छूटे पिरीत पिचकारी।
रंग - गुलाल के ओखी,
फुलय मया के फुलवारी।।
मया के बंधना ल कोनो झन टोरे।
आगे पहुना बसंत देख तो रे ।।
2 टिप्पणियाँ
Bahut sundar...
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