जन्मदिन पर विशेष.
छतीसगढ़ और संस्कारधानी भूमि मे 18 जुलाई सन 1965 में श्रीमती कविता वासनिक का जन्म भरकापारा राजनांदगांव के निवासी स्वर्गीय रामदास हिरकने जी के निर्धन परिवार में हुआ था श्रीमती कविता वासनिक बचपन से ही दुबली पतली और संकोची स्वभाव की बिटिया थी। इन्हें देख कर कोई भी सोच नहीं सकता था कि यह छोटी सी चिरैया एक दिन छत्तीसगढ़ के लोक गीतों की कोकिला बन जाएगी। यह सार्थक सत्य है कि "पूत के पांव पलना में दिखने लगते हैं" श्रीमती कविता वासनिक के पिता स्वर्गीय रामदास हिरकने उनकी जादुई मखमली आवाज को पहचाना और उसको सवारने की दिशा में पहली बार स्कूली कार्यक्रम के दौरान फ्रॉक पहनी इस नन्ही सी बिटिया को हाथी मेरे साथी फिल्म का गीत-" चल चल चल मेरे हाथी" गीत के माध्यम से प्रस्तुतीकरण के लिए हौसला बढ़ाया जिसे सुनकर उपस्थित संगीतज्ञ गुरुओ और जनमानस की आंखें फटी की फटी रह गई, तथा तालियों की गड़गड़ाहट लगातार गूंजती रही। लोकल यात्रा में अपने सहयोग के बारे में श्रीमती कविता वासनिक बताती है कि लोक कला यात्रा के सफर में उन्हें प्रमुख रूप से दाऊ रामचंद्र देशमुख, महासिंह चंद्राकर, खुमान लाल साव, गिरजा सिन्हा, संतोष टांक और उनके जीवन साथी विवेक वासनिक का महत्वपूर्ण योगदान मिला।
छत्तीसगढ़ी लोक गीतों के संदर्भ में श्रीमती कविता वासनिक कहती है कि छत्तीसगढ़ के लोकगीत उनके लिए मां (महतारी) का स्थान रखते हैं, और क्या-? कोई बच्चा अपनी मां से जुदा हो सकता है। यह मुमकिन नहीं है। उनके लिए छत्तीसगढ़ी गीतों का स्थान अपनी अंतिम सांसों से भी बढ़कर है।उन्हें बड़ी खुशी होती है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पूर्व छत्तीसगढ़ी गीतों के माध्यम से सांस्कृतिक क्रांतिकारी गतिविधियों की वह एक सिपाही बनी और अपनी छत्तीसगढ़ की पहचान को जन-जन तक पहुंचाया।अपने मन की बात कहते हुए वह कहती हैं कि कलाकार का सबसे बड़ा दुश्मन उसका भी अभिमान होता है। इसलिए सहज सरल व्यवहार के साथ एक अच्छे कलाकार के रूप में छत्तीसगढ़ी गीतों की अस्मिता को बचाए रखें और फूहड़ ता से दूर रहें।
रवि रंगारी की कलम से......
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