जन्मदिन पर विशेष
जिनके लोकधुनों में बसती है,छतीसगढ़ की आत्मा....
साहित्य खेल और सांस्कृतिक विरासत में राजनांदगांव संस्कारधानी का कोई सानी नहीं है। लोक कलाकारों खेल-खिलाडि़ओं और साहित्य के प्रति रुझान का सिलसिला अनवरत रूप से राजनांदगांव की माटी से जुड़ा हुआ है। आज हम ऐसे ही सांस्कृतिक विरासत के लोक धरोहर से रूबरू कर रहे हैं जिनकी लोकधूनों में समसरसता के साथ अपनापन झलकता है। जिनके द्वारा स्वरबद्ध धुनों में छत्तीसगढ़ की आत्मा बसती है।
22 जुलाई सन 1957 वह शुभ दिन है जब लखोली नाका के संभ्रांत नागरिक हीरामन कोशा के घर आत्माराम कोशा का जन्म हुआ। इन्होंने सर्वेश्वरदास हाई स्कूल से मैट्रिक तक की शिक्षा ग्रहण की तथा संस्कारधानी राजनांदगांव के ऐतिहासिक महाविद्यालय दिग्विजय कॉलेज से साहित्य से एम.ए. किया। श्री कोशा ने अपने कला जीवन की शुरुआत ननपन से ही कौरिनभाठा स्थित फिरंतीन मंदिर में देवी प्रतिमाओं का निर्माण कर किया। चित्रकारी में शौक के अलावा इनका लगाव लोक कला व लोक संगीत की ओर बढऩे लगा। लोक संगीत और लोक विधा के रुझान के साथ ही इनका संपर्क नाचा के पुरोधा दाऊ दुलार सिंह (मंदराजी) के साथ हुई। इसके साथ ही उन्होंने लखोली रवेली नाच पार्टी लखोली से लोक यात्रा का प्रारंभ की। इसके पश्चात उन्होंने अंचल की सुप्रसिद्ध नाचा पार्टी टेडेसरा में चर्चित नाटक ‘चोर चरणदास’ (नाचा वर्जन) में बेंजो वादन कर नेपथ्य संगीत से अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। व सिद्ध हस्त संगीत संयोजक के रूप में अपनी पहचान बनाई।
लोककला यात्रा का दूसरा पडाव व संगीत निर्देशन का दायित्व..
लोक यात्रा के इनके अगले पड़ाव में सन 1982-83 में छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध संगीत निर्देशक स्वर्गीय खुमान लाल साव के साथ जुडक़र लोक सांस्कृतिक संस्था चंदैनी गोंदा में कई वर्षों तक अपनी निस्वार्थ सेवा दी। वही समयांतर सन 1991-92 में डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू द्वारा निर्मित ‘दहेज दानव’ छत्तीसगढ़ी वीडियो फिल्म में संगीत निर्देशक की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में पद्म विभूषण तीजन बाई सुप्रसिद्ध पंडवानी गायक झाड़ूराम देवांगन हास्य कलाकार मदन निषाद, बसंत चौधरी, महेश ठाकुर, लोक गायिका जयंती यादव, वह छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध ढोलक वादक मदन शर्मा आदि प्रसिद्ध कलाकारों ने अपनी सहभागिता निभाई थी इसी फिल्म में श्री कोशा ने वर्तमान में छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गायक महादेव हिरवानी को गायन को प्रथम ब्रेक दिया यही से उनका लोक कला यात्रा में शुरुआत मानी जाती है।
आत्म स्वाभिमान के लिए, दिशा बदली...
उन दिनों संगीत कला क्षेत्र में आपसी सामंजस्य का बड़ा बोलबाला था। प्रतिभाओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन पर सांगीतिक महागुरुओं में आपसी कटुता उभर कर सामने नहीं आती थी। किंतु इन्हीं सभी परिस्थितियों का भान करते हुए श्री कोशा ने स्व,खुमानलाल साव निर्देशित चंदैनी गोंदा लोक सांस्कृतिक मंच को अलविदा कह दिया। संगीत व लेखन यात्रा की भूख लिए श्री कोशा ने लेखन कार्य हेतु अपने आप को तैयार किया। शब्दों के आपसी तालमेल के साथ ही उस दौरान उनके अखबारों में लेख, आलेख, कविता, कहानी, समीक्षा, साक्षात्कार, धर्म, अध्यात्म व तीज त्योहारों में लेखनी सतत रूप से चलती रहरी। इसी दौरान उन्होंने जागरूक यूको द्वारा गठित पत्र लेखक मंच में कई वर्षों तक अध्यक्ष पद की महती भूमिका निभाई। श्री कोशा राजभाषा प्रचार समिति मंदराजी जयंती आयोजन समिति - कन्हारपुरी से भी वे जुड़े रहे सन 2000 में भी छत्तीसगढ़ साहित्य समिति में जिला अध्यक्ष रहते जिले ही नहीं वरण छत्तीसगढ़ स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई, और लगातार अपनी कलम की धार से जनमानस को साहित्य प्रेम का रसास्वादन कराया है।
रचनात्मक विधा की ओर लगाव,
श्री आत्माराम कोसा ने अपने रचनात्मक एवं जागरूकता पूर्ण कार्यों के चलते पत्र लेखक मंच से तथा राजीव गांधी फैंस के बैनर तले सन 1995 में अपने मित्र सतीश भट्टड के साथ राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं सद्भावना का संदेश देने के उद्देश्य को लेकर नई दिल्ली तक की 1700 किलोमीटर तक क्रास हेड मोटरसाइकिल यात्रा तय की थी। वही दूरदर्शन एवं आकाशवाणी केंद्रों से आपकी कविता पाठ का प्रसारण नियमित होते रहता है। आपकी प्रतिभा अनुकूल अलग अलग राज्यो में होने वाले विभिन्न साहित्यिक महोत्सवो वह कवि सम्मेलनों में शिरकत करते रहते हैं। विभिन्न कवि सम्मेलनो के तहत वे दानेश्वर शर्मा, नारायण लाल परमार, लक्ष्मण मस्तुरिया, पवन दीवान, मुकुंद कौशल, डाँ सुरेंद्र दुबे, रामेश्वर वैष्णव, संतोष झांझी, सुशील यदु, बिशंभर यादव (मरहा) पीसी लाल यादव, जैसे अनगिनत गीतकार व साहित्यकारों के साथ मंच साझा किया है। साथ ही अपने उत्कृष्ट लेखन शैली से जनमानस के उत्थान हेतु अपने उत्कृष्ट लेखन शैली से शासन प्रशासन के अनुदान योजनाओं के तहत कई बुजुर्ग लोक कलाकारों को आर्थिक लाभ पहुंचाया है।
लेखन के अंतिम पडाव में,,,मन की बात..शुभकामनाओंके साथ...
संस्कारधानी राजनांदगांव छत्तीसगढ़ कला विरासत की भूमि है। जिसकी माटी में थिरकते पैरों की थाप के साथ घुंघरू की खनक, मांदर, ढोलक व विभिन्न वाद्य यंत्रों की धमक के अभिगूंजन के साथ ही यह आभास होने लगता है कि, यह संस्कारधानी की पावन धरा है ।विभिन्न सांस्कृतिक साहित्यिक तथा खेल सम्मिश्रण के नाट्य विधाओं के कुनबे को इस संस्कारधानी ने कई रत्न दिए है। इन रत्नों की ओर हम नजर डालें तो... जिक्र करते करते एक दशक कम पड़ जाएगा। इसलिए शब्दों की गरिमा और कम शब्दों के साथ आत्माराम कोशा जी का नाम भी कलानिधि रत्नों में देखा वह पढक़र समझा जा सकता है। आज उनके अवतरण दिवस पर समस्त कलाकार साहित्यकार रचनाकार और संगीतकार कला धर्मोंयों की ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं... इनकी कला कौशल यात्रा इसी प्रकार अनवरत जारी रहे। इन्ही मंगल कामनाओं के साथ उन्हें अनेक जन्म दिन की पुनश्च: बधाई।
- रवि रंगारी (शिक्षक)
लोक कला एवं संगीत धर्मी
भरकापारा राजनांदगांव
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