गोबर खाद से अन्न उपजे आऊ
गोबर उपल से बनत हे खाना ।
चल ग भैया झनुंहा धर अब गोबर
बिन ल हे जाना ।।
पूजा म गौरी बनथे आऊ खूब
उपजते धान ।
गोबर अब गोबर नई रहिगे
बढ़गे ओकर "मान" ।।
दारू घलो बनही ओकर ले
पिही जनता आम ।
६५ रुपया मिल्ही पैया खूब
छलकही जाम ।।
शोधार्थी कहत हे ये दारू
नई कराय शरीर नुकसान ।
पी पी के पहलवान बनाही
दूध,दही के का काम
देखते देखते बढ़ गे कतका
गोबर के"मान" ।।
किसान बेचही गोबर आऊ
दारू बिसाही ।
पियत देख रस्ता बाट म
पुलिस केश बनाहि ।।
महुवा वनोपज सरकारी
जेकर दारू बनाए म सजा।
लगत हे अब जनता daru
पी के खूब करही मज़ा ।।
दारू बन्द करे ल छोड़
सरकार देवत हे बढ़ावा ।
गोबर कारोबार करैया
खूब पावत हे चढ़ावा ।।
कीमत अच्छा मिलत हे
कहिके करत हे अभिमान ।
अब तो यही गोबर ह लिही
कतको के जान ।।
देखते देखते म बढ़े लगीच
गोबर के "मान"_गोबर के"मान"
सुरेश बंजारे***
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