तोर जर खाने तेन नोहे,संगी - मितवा रे।
घर - कुरिया लेसे तेन नोहे तोर हितवा रे।।
तोरेच ल खा के तोरे ओ हिनमान करे।
बखत परे मा बइरी तोर गुनगान करे।।
कभू अपन नई होवय हुँड़रा - बिघवा रे।
तोर जर खने तेन नोहे संगी - मितवा रे।।
लोहा सउँहे अस तैंहा धरहा हँसिया बन।
बइमान के गर काटे बर तैंहा टंगिया बन।।
कब तक बने रहिबे अड़हा - सिधवा रे?
तोर जर खने तेन नोहे संगी - मितवा रे।।
बनके बनिहार पहावत हस तैंहा दिन ल।
हक तोर कहाँ हे जल -जंगल -जमीन ह?
तोर लइका के मास चिथत हे गिधवा रे।
तोर जर खने तेन नोहे संगी - मितवा रे।।
हक ह मांगे म मिलय नहीं तैंहा जान ले।
माटी बर लड़े ल परहीच पक्का मान ले।।
घर - घर बरेंडी म बइठे हवय घुघवा रे।
तोर जर खने ते नोहे संगी - मितवा रे।।
डॉ.पीसी लाल यादव
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