माटी बर लड़े ल परही - डॉ.पीसी लाल यादव

                                                 

तोर जर खाने तेन नोहे,संगी - मितवा रे।

             घर - कुरिया लेसे तेन नोहे तोर हितवा रे।।

 

         तोरेच खा के तोरे हिनमान करे।

         बखत परे  मा बइरी तोर गुनगान करे।।

         कभू अपन नई होवय हुँड़रा - बिघवा रे।

तोर जर खने तेन नोहे संगी - मितवा रे।।

 

         लोहा सउँहे अस तैंहा धरहा हँसिया बन।

बइमान के गर काटे बर तैंहा टंगिया बन।।

         कब तक बने रहिबे अड़हा - सिधवा रे?

         तोर जर खने तेन नोहे संगी - मितवा रे।।

 

         बनके बनिहार पहावत हस तैंहा दिन ल।

         हक तोर कहाँ हे जल -जंगल -जमीन ?

         तोर लइका के मास चिथत हे गिधवा रे।

         तोर जर खने तेन नोहे संगी - मितवा रे।।

 

         हक मांगे मिलय नहीं तैंहा जान ले।

         माटी बर लड़े परहीच पक्का मान ले।।

         घर - घर बरेंडी बइठे हवय घुघवा रे।

         तोर जर खने ते नोहे संगी - मितवा रे।।

 

                   डॉ.पीसी लाल यादव

 

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