हमर साहित्य अइसे तो हर भाखा के अपन साहित होथे। जउन म वो भाखा के बोलइया मनखे के दुख-पीरा,हाँसी-ठिठोली, सँग जिनगी जिएँ सबो चलन के दरसन करे जा सकत हे। अइसे भी कहे जाथे, कहूँ कोनो सँस्कृति अउ सऽयता के ना…
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