हमर साहित्य : छत्तीसगढ़ी साहित अउ सोशल मीडिया



हमर साहित्य

अइसे तो हर भाखा के अपन साहित होथे। जउन म वो भाखा के बोलइया मनखे के दुख-पीरा,हाँसी-ठिठोली, सँग जिनगी जिएँ सबो चलन के दरसन करे जा सकत हे। अइसे भी कहे जाथे, कहूँ कोनो सँस्कृति अउ सऽयता के नाँव बुताना हे (नाश करना हे)त उँखर साहित ल बिगाड़ दौ।एखर मतलब होइस कि सँस्कृति अउ सऽयता ल जानना हे त वो देश परदेश के साहित ल पढ़ना चाही। साहित जरूरी नइ हे कि बड़े-बड़े पोथी पथरा के रूप में मिले, साहित के सरूप समे के संग बदलत गे हे अइसे कहे जा सकत हे। काबर कि बहुत कुछ जानकारी जउन अभी तक देखे म मिलथे,वो म श्ािलालेख या पथरा में लिखे अउ उकेरे चित्र ल भी साहित्य के रूप में लिए जा सकथे। हाट बाजार मंदिर मन म इहाँ-उहाँ बिखरे पड़े मिले हे।

कुछ साहित मौख्ािक रूप ले एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी में सरलग आगू बढ़त हे। अइसन हमर छत्तीसगढ़ी साहित बर भी कहे जा सकत हे या माने जा सक थे। इहाँ कथा कहिनी बाबा डोकरी दाई मन ले सुन के कतको पीढ़ी बीत गिन, आजो बबा डोकरी दाई मन ल कई ठो कहिनी किस्सा गाँव के नाती नतुरा मन ल सुनात  देखे जा सकथे। टीवी रेडियो के चलन नइ रहे ले गुड़ी चैक मा, पारा परोस के बड़े-बड़े चैरा म किस्सा कहिनी कहि के थके हारे मनखे  मन के मनोरंजन करथे। धीरे-धीरे समे के संग हमर पुरखा साहितकार मन एला लिख्ािन-पढ़िन अउ किताब पोथी के रूप में सहेजिन। आजो सहेजत जात हे। जउन ला लोक साहित के नाव ले आज भी नवा नवरिया साहित्यकार मन अब सब परकार के छत्तीसगढ़ी साहित्य सिरजत हावे। फेर पढ़ईया के तब रोना रहिस रहे अउ आजो रोना हवे। ए कहे जा सकथे। किताब पढ़ईया अब नहीं के बराबर हे, अइसन काबर हे एखर गोठ करना अभी जरूरी नइ हे। फेर एकर र्पूित करत नवा उदीम मोबाइल आय हे। जेमा सोशल मीडिया के रूप में व्हाट्सएप,फेसबुक, ट्वीटर, गूगल के उपयोग करे जात हे। छोटे बड़े नवा नेवरिया अउ वरिष्ठ साहितकार मन ल एके मंच में देखे जा सकत हे। जेन नवा नेवरिया साहितकार मन ला मंच नइ पात रहिन। उन ल सोशल मीडिया मउका दिस। हर हाथ मोबाइल चलावत सोशल मीडिया में अपन भाखा बोली के बात सुनथे। ए किसम ले कहे जाय त हर भाषा के साहितकार बर मीडिया बड़े वरदान साबित होत हे। फेर छत्तीसगढ़ी बर बहुते जादा वरदान माने जा सकत हे। कारण इहाँ समाचार पेपर म छत्तीसगढ़ी बहुत कम होथे। छत्तीसगढ़ी के पर्याप्त समाचार पेपर नइ हे। छत्तीसगढ़ी के रचनाकार ल पाठक तक बरोबर पहुंचे के मौका फेर व्हाट्सएप फेसबुक के जरिया ले मिले हे।

आज सरकारी योजना मन के अउ राजनीतिक विज्ञापन के परचार परसार भी सोशल मीडिया म भरपूर होवत हे। यहू म छत्तीसगढ़ी के परयोग एक आशा के किरण हे कि सरकार अउ नेता मन मन ले मानथे कि जनता तक छत्तीसगढ़ी ले बात सही ढंग ले पहुँचथे। एखर फायदा साहितकार मन ल उठाना पड़ही। साहित सिरजन करत छत्तीसगढ़ी ल बराबर मान देवाय बर जरूरत के उदीम करँय। सम के सँग चलत ही सफल होय जाथे, समे के पाछू चले ले कभू सफल नइ होय जा सकय। इही ढंग ले आज के समे सोशल मीडिया के हावै एकर उपयोग करत छत्तीसगढ़ी भाखा के विस्तार करना पड़ही सोशल मीडिया म छत्तीसगढ़ी भाखा या साहित बर दू ठन बड़े चुनौती दिखथे। एक किस्सा कहिनी बड़े होय ले एला पाठक नइ पढ़े।

दूसर आज के जादा पढ़े लिखे मन अपन लइका मन ला अपन महतारी भाखा ले दूरिहा रखत हें। ए दूनो चुनौती ले पार सरकारी पहल ले ही  पाय जा सकथे। पाठ्यक्रम म कहिनी लोकचरित्र के सँग गीत कविता के पढ़ाई के महतारी भाखा माध्यम बनै। छत्तीसगढ़ी बर एक बात यहू हे कि बहुत पहिली एकर बोलइया रहिस तब साहितकार नइ रिहिन। आज दूनो हे त एला राजभाषा के सही मान देवाय म कोनो अड़चन नइ होना चाही।

लेखक

पोखन लाल जायसवाल

पलारी 

बलौदा बाजार- छ.ग

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