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हमसे एक लाठी लेकर तो
चला नहीं जाता
बच्चों के फटाके का शोर
सहा नहीं जाता
घर बैठे बन गए प्रश्नवीर
और जाँबाजों की पीठ पर
दाग रहे हैं
सवाल पे सवाल
जो हमारे मस्तक पर
आती दनदनाती गोलियों को
अपनी छाती से रोक देते हैं
कभी हो जाते हैं निढाल,
और लिख देते हैं खून से
वं दे मा त र म् ... !
हमारी बड़ी-बड़ी गल्तियाँ हैं
माफ हो जातीं
पर उनकी एक चूक भी
माफ नहीं होती
उनका कोर्ट मार्शल बड़ा प्रचण्ड है
यह तो उनकी मौत से भी बड़ा दण्ड है
यह तुम जान लो
उनका कर्जा है हम पर
अपना तो पूरा करो धरम
नित-नित कहो उन्हें "वंदेमातरम्"
जिस पर वे हजार बार मरते हैं
मन नहीं भरता तो दीवाने
फिर जनम लेते हैं
तेरे एक "वंदेमातरम" पर तो
मैं भी झूम लूँ
और माथे को क्या
मैं तेरे चरणों को चूम लूँ !
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लोकनाथ साहू ललकार
दुर्ग
1 टिप्पणियाँ
सुंदर अभिव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंडाॅ0चंद्रकांत तिवारी/ उत्तराखंड
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