ग्राम्य लोकजीवन के अंतर्गत एक नारी-व्यथा को चित्रित करती छत्तीसगढ़ी कहानी


कहानी :
                           // असाढ़ के एक दिन //
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        असाढ़ लगे हफ्ता भर होगे। जयलाल अउ बसंता ल अब थोरिक आस नइ राहय कि नान्हें नोनी नर्मदा बर सगा अमरही कहिके। उन्ला लागिस कि भइगे नइ होय येसो नर्मदा के बिहाव। अब बड़े बेटी गैत्री के बिहाव के जोरा मं लग्गे। आजेच् जयलाल ह अपन बड़े बेटा लोकनाथ ल बिहतरा जिनीस लेय ला जाये बर काहत राहय ; तइसने मं गाँव के जगदीश मंडल ह टूरी देखइया सगा लानिस। सब झन बइठिन। चहा-पानी होइस। गोठ सुरू होइस। जयलाल ह बसंता ल अँखियाते रिहिस , तइसने मं नर्मदा ह अपन छोटे बहिनी गौरी संग तरिया ले नहा के आइस। सगा मन ल देखके नर्मदा ल सब समझ आगे। जयलाल के नान्हें बाबू भीखम ह लोकनाथ ल बलाके लानिस। गोठ ह आगू सरकीस। सब झन ल सब जमगे। आखिर मं नर्मदा के बिहाव के दिन-तिथि सब तय होगे।  
 
       बिहतरा दिन अमरीस। गजब दिन बाद हमर सोंहपुर गाँव मं असाढ़ महीना मं बिहाव होवत हे कहिके लोगन बड़ खुस राहैं। दूनों बहिनी के संघरा एके लगन मं बिहाव माढ़िस। असाढ़ के बिहाव ह चीखला नाचन ताय। पानी-बादर मं बिहाव सुरू होइस। तीन दिन मं बिहाव घलोक निपटगे। मड़वा भीतरी बिदा होइस। गैत्री ह जेवरतला ससरार गीस। नर्मदा ल पउवारा गाँव ह ससरार मिलिस। बिहाव के झरे ले जयलाल अउ बसंता हर फेर कमाय-खाय बर चंद्रपुर जाय के मन बनाइस। लोकनाथ कथे - ' भइगे बाबू , तुमन अब मत जावव गा चंद्रपुर। इही कोती काम-बुता करबोन। सब झन घर मं रहिबोन एक जगा।' ,

         ' नहीं...बेटा...हमन दूनों झन जाबोन ग तभे बनही, काबर कि बिहाव मं करजा-बोड़ी होगे हे गा...छुटाही त जी हाय लागही। ' जयलाल किहिस। अब लोकनाथ ल कुछू काहत नइ बनिस। ताहन सब झन बिचार-बिमर्स करके जयलाल ह अपन दूनों घर-परवार ल लोकनाथ के भरोसा छोंड़के चंद्रपुर चलदीन।

          दू-चार महीना बितीस। जयलाल अउ वोकर परवार ल बेटी मन बने-बने खाय-कमाय सोर-संदेस मिलत रिहिस। गैत्री ल पति अउ घर-दुवार बने मिले रिहिस। अपन ससरार मं बढ़िया कमावन-खावन लागिस। सास-ससुर , ननंद-देवर , जेठ-जेठानी सब रिहिंन। बेटीजात ल किस्मत जान के बर अउ घर मिलथय। सब के भाग एक जइसे नइ होय। ये दुए-चार महीना मं नर्मदा के ससरार के रेंवा-टेंवा दिखगे। राहय तो नानुक परवार - सास-ससुर अउ आदमी , पर सब बारा हाल। पति कमलसिंग आरुग सिधुवा ; अउ सिधुवा का...एक नंबर के डरपोकना। पुरुसपना कम , धपोरवा जादा। बाप-महतारी के मुताबिक चलै। नर्मदा बर वोकर मया सस्तहा राहै। सास परमीला एकदम खड़बाज। ससुर पतराम ह मरखंडा मवेसी कस। सास ते सास ससुर घलो एक नंबर के लड़ंता। नर्मदा ल घलो जेसने पाय तेसने काहै । सास-ससुर के रात-दिन के हलाकान के मारे थर्राय नर्मदा अपन आदमी मेर दुख-सुख ल गोठियाय , पर सब बिरथा ; वो तो बने ढंग ले हूँके न भूँके । नर्मदा ल के मन सब ले तब फटिस जब पतराम हर वोकर बर नान्हें नीयत करन लागिस। अबड़ चलवंतिन परमीला ह अपन आदमी के पोल ल दबा के नर्मदा बर मनमाड़े बिफर जाय ; अउ कभू-कभू मारपीट घलो करै। काहय - ' तोला इहाँ रहना हे बाई ते सब ला सहे परही। फालतू लांछन लगाथस। '

            ' काकरो घर अइसन नी होवत हो ही। मोरे तकदीर ह फूटे हे , त तो मोला अइसन ससरार मिलिस ' काहत नर्मदा सिसकै। दू-तीन घाँव दुखियारिन नर्मदा अपन मइके खभर पठोइस त सब समझाँय - ' ले नर्मदा, कइसे करिबे बेटी , कभू दुख त कभू सुख। घुरुवा के दिन घलो बहुरथै। जेन हर सुनते, तेकर बनथै।'  नर्मदा ह घलो माय-मइके बदनाम मत होवय कहिके समै ल काटन लगिस। सोचय ; गुनै - ' भगवान बाल-बच्चा दे देतिस ते , वोकरे मं करम-किस्मत ओधाके रहिजातेंव। पर आहू नहीं, त कइसेच् अउ कोन ल देखके राहँव।' नर्मदा के आँखी ले आँसू पलपल-पलपल चूहन लग जाय। वोकर ससरार के तपई ह दिनोदिन बाढ़ते गीस।

         अब ये सब बात ह पारा-परोस , सगा-सोदर , जात-गोतियार अउ जात-समाज मं बगरीस। सब सकलाइन। डाँड़बोड़ी होइस। सब झन ससरार वाले मन ल थू-थू करीन। सब झन बिचार-बिमर्स कर के नर्मदा ल ससरार अमराइन। महीना दू महीना बने-बने बितिस। फेर ताहन उहिच् हाल। कुकुर के पुछी टेड़गा के टेड़गा। अइसे लागय कि जेकर फुटिस करम , तेन धरिस नारी जनम। परमीला ह सुनावत राहय नर्मदा ला - ' बने सकेले रहेस तोर लगवार मन ला , काय होइस , झक मराय आयेस। पउवारा तो आयेस चाँटे बर इहाँ। तोर दाई-ददा मन अमरा दीन। होगे उँकर छुट्टी , रहा इहाँ , भजिया खा। रहा सोझबाय। रहा सुन के। तोर बाप-महतारी हर कतेक दिन ले तोला बइठा के खवा ही । '

          लक्ठच् मं ठाढ़े कमलसिंग एक भाखा नइ बोलिस अपन महतारी ल , त नर्मदा किहिस - ' अब मोर आदमिच् साख नइ हे त मैं अब काय बताँव। '  कमलसिंग सुन परिस। बिफर गे। नर्मदा के चूँदी ल धर के हटकारन लागिस - ' मोर महतारी ल मोर राहत ले रंग-रंग कहितस। तैं इहाँ ठीक-ठाक रहना हे रहा , जा तोर बर दुनिया हे।' आदमी के गोठ ल सुनके नर्मदा धर-धर-धर रोवन लग्गे। नारीजात ह ससरार मं पति उपर अपन करम अउ किस्मत ल ओधाके रहिथे। ससरार मं कतको कस्ट अउ दुख मिले  , पति के एक मीठभाखा एक नारी बर अमरीत होथे ; पर नर्मदा बर इहाँ सब बिरथा राहै। समय सरकन लागिस।

          फेर असाढ़ के महीना आइस। बूंदा-बांदी पानी के गिरे ले लोगन पेरा-वेरा धरन लागिन। पतराम घलो पेरा धरे के योजना बनाइस। दूसर दिन पेरा धरई सुरुच् होगे। दू-चार झन बनिहारिन लगाय रिहिन। दुरिहा बियारा ले बोझा-बोझा पेरा मुँड़ मं डोहारन लागिन। कमलसिंग ह एक झन बनिहार संग बियारा मं बोझा बाँधत जाय। पेरा-परसार मं पतराम ह पेरा-कोचई बूता करै। बिहनिया ले सुरू होय राहय ; बारा बजगे । काम चलते रिहिस। नर्मदा ह बोझा ल लाके पटकीस। तभेच् पतराम ह खोर मं निकलके देखिस। न तो बोझियारिन मन दिखिन , अउ न तो कोनों। ताहन फेर कोठा मं आके वो ह पेरा कोचे के ओखी मं नर्मदा ल बलाइस। वोकर दूनों बाँह ल धरके तीरन लागिस। नर्मदा काँपगे ; डर्रागे। हूरहा गिंगियाइस। हँफरत ,कूदत-हपटत गली मं निकलीस। मनमाड़े रोवन लागिस। बस्तीवाले मन जुरियागें। नर्मदा सब ला बफलदीस। गाँववाले मन मनमाड़े पतराम ऊपर बिफरीन। नर्मदा आँसू पोंछत उठिस। किहिस - 'गाँव के सियान हो! मैं अब इँकर घर मं नइ रही सकँव। मैं जावत हँव। मैं दुनिया मं भीख मांग के जी जाहूँ , पर अब इहाँ नइ रही सकँव।' वोत्काबेर कमलसिंग ह नर्मदा ल सेंके के कोसिस करत राहय ; नर्मदा फूंकारिस- ' ऐ,तैं मोला नइ रोक सकस। तोर मोर रिस्ता खतम। अगर तैं अपन असल बाप के अवलाद नइ होबे, त मोर रद्दा मं आबे। ' गाँव वाले मन सन्न खागें। ' नर्मदा ह हाथ जोड़े उहाँ ले जावन लागिस सरी मँझनिया। सब देखत रहिगें।

          ससरार ले छुटे बेटी भला अउ काँह जाही , नइहर मं ही जाथै। भँइस्सा मुँधियार कुन नर्मदा पहुँचीस सोंहपुर। सब ला बड़ा अचरज लागिस। रातेकुन नर्मदा ह बाप-महतारी अउ बड़े भाई ल सब बता डारिस। सब दुखी होइन। धीरे-धीरे सब बात ह सगा-सोदर अउ जात-समाज मं बगरगे। नर्मदा के दुःख अउ मजबूरी ल सब जानिन-समझीन। बिचारिन घलो कि कइसनो कर के एक घाँव नर्मदा ल वोकर ससरार भेजे के ; पर नर्मदा ह मुँड़ पटक दीस ससरार जाय के नाम मा। अब वोकर मइकेच् मं रहना तय होगे। दू-तीन महीना के गेये ले नर्मदा बनी-भूती जाय लागिस। अब सबझन नर्मदा ल सुविकार लीन। फेर जयलाल अपन दूनों परानी लोकनाथ ल घर-परवार ल  सउँप के चंद्रपुर चलदीन। लोकनाथ ह तो लोकेनाथे राहै ,माने बड़े भाई याने बड़े भाई। सब ला वो हियाव करै। नान्हें भाई-बहिनी मन घलोक वोकर इज्ज्त करैं। लोकनाथ ह बिहनिया ले रोज सयकिल मं कमाय भर राईसमिल कचांदूर जाय। नान्हें भाई-बहिनी भीखम अउ गौरी पढ़े बर जाँय। नर्मदा ह गाँव के मन बला लेय ते बनी जाय ,नहिं ते घर मं राहय  ; घर-दुवार सम्हालै। हाथ के आय ले, कमाय। कभू-कभू थोरिक ठेलहा हो जाय त, अपन पहार अस जिनगी के बारे मं सोंचत वोकर अंतस फीज जाय।

           एक दिन लोकनाथ ह सेंकड सिफ्ट ड्यूटी ले लहुँटत खानी वोकर संगवारी मन कहि-परिस कि यार तैं बिहाव कब करबे, तिहीं बाँचे हस, हम जहुँरिया मन के सब के बर-बिहाव होगे। सब के गोठ ल सुनके लोकनाथ मुस्कादिस। ताहन फेर कथे कि नर्मदा बर कोन्हों कोती ले अउ सगा-वगा आतिस , बना-वना के ले जातिस , ते बने होतिस। वोकर जिनगी बन जातिस ; वोकर संसार एक घाँव तो बस जातिस ; उही ल देखत हँव। वोकर संगवारी मन मुँड़ी डोलावत गीन।लोकनाथ ह अपन भाई-बहिनी ल बड़ मया करै। सब ला बटोर के रखै ; अउ मउका देख के डरवाय घलोक। गोठियात-गोठियत सबझन  गाँव पहुँचीन। लोकनाथ अपन घर निंगीस। देखते कि गैत्री के दूर के एकझन देवर प्रीतम आय राहै।सबोझन गोठियावत राहैं। लोकनाथ ह प्रीतम संग जोहार-भेंट करिस। हाल-चाल पुछिस। सबझन खाइन-पियीन। प्रीतम ह चलदीस।

           प्रीतम रुआंबांधा मं कालेज करत राहय-एम.ए. पूर्व। अपन गाँव जुनवानी ले रोज सयकल मं अवई-जवई करै। रस्ता मं लोकनाथ के घर परय , त कभू-कभू इँहा निंग जाय। अइसने अवई-जवई मं लोकनाथ अउ घर के सबझन संग प्रीतम के बने संबंध बनगे। इँकर अउ प्रीतम के दिल्लगी के रिस्ता आय , सबझन के हँसी-मजाक चलै। कभू-कभू अइसे घलो होय कि प्रीतम आय, त नर्मदा ह घर मं एकेझन घलोक राहै ; अइसे मवका बनते गीस। फेर ताहन प्रीतम ह अइसना मवका बनात गीस। सियान मन कहे कि अगिन ठउर मं माटी तेल रखई बने नोहे। पर इँकर दूनों बीच मं अइसने होइगे। छलकत तरिया मं खिले कँवल ले मन-मतंग भँवरा कब तक दुरिहाय रतिस। प्रीतम के जवानी अउ नर्मदा के हरदाय रूप ठट्ठा-ठट्टा मं अरझगे। मया के फाँदा मं फँसगे दुनोंझन। इँकर मया के दू-चार दिन लुका-छिपी चलिस। लोकनाथ ल पता चलगे। बाप-महतारी ल खभर करदीस। सगा-सोदर मन घलोक सुनगुन-सुनगुन जान डारिन। गाँववाले मन के कान मं घलोक परगे। मामला पूरा जग-जाहिर होगे। खाँसबे ते अवाज करबे करही ; ठूँ हो चाहे ठाँय।

            प्रीतम अउ नर्मदा के मया बाढ़ते गीस ; सब तो जान डारे राहँय ; नर्मदा के घरवाले मन सुविकार लीन इन्ला ; काबर कि येमन चाहँय कि जात-सगा , रिस्तेदारी अउ नत्ता-गोत्ता बने जमै। पर प्रीतम के घरवाले मन डहर ले ना-नुकुर राहय ये रिस्ता बर , येकरसती उँकर बिचार सही नी लगय कि नर्मदा ह बिहाता अउ मइके मं बइठे बेटी आय ; अउ प्रीतम कुआँरा। फिलहाल प्रीतम कोती ले कोनों ऐतराज नइ राहै। नर्मदा ल समंदर चाही ; वो चुप राहै। अब नर्मदा के घरवाले मन प्रीतम ल घर मं आय-जाय बर मना करन लागिन। नर्मदा ल घलो बरजीन। पर जंगल के लगे आगी ल बुझई बड़ मुस्किल होथै। अब इँकर दूनों के घरवाले मन के मना करे के बावजूद इँकर मिलई-जुलई होही जाय। दूनों घर-परवार के मन बदनामी ले बाँचे बर दूनों उपर सख्ती बरतीन। पर इँकर मामला अइसने चलते रिहिस। दू बछर बीतगे देखते-देखत , पर सब बियर्थ। कई बार लोकनाथ ह प्रीतम अउ नर्मदा ल समझाइस , चेताइस, कोई मतलब के नइ होइस। अब तो अइसे होगे राहय कि प्रीतम ह नर्मदा मं सिरिफ नर्मदा देखय अउ अस्नान करे के मन करय वोकर , पर नर्मदा हर प्रीतम मं अपन संसार देखै।

             समय-चिरइया उड़ान भरन लागिस। अब प्रीतम अउ नर्मदा के बस अइसना चलते रिहिस। एक बखत के बात आय। असाढ़ के रथदुतिया के दिन प्रीतम ह नर्मदा के घर आइस। घर मं कोनों नइ राहैं। दुनोंझन अबड़ बेर गोठियाइन। आज नर्मदा के लपटाय भाखा निकलगे - ' प्रीतम, हमन कब तक अइसने मिलत रहिबोन, चलना काँहचो भाग जातन। तैं मोला काँहचो भी होय ले जा। मैं जाय बर तइयार हँव। मैं तोर सन रहि जाहूँ , हर हाल मा।' प्रीतम सन्न खागे,कहिथे-'काँह जाबोन। तोला काँह लेके जाहूँ। थोरिक दिन रूक जाना। ताहन...' काहत प्रीतम के छाती मं नर्मदा बोटबोटाय कंदरत ओधगे। प्रीतम के बदन भर बिजली दउँड़गे। बेरा बड़ा बलवान होथै।कुरिया के किवाड़ ओधगे।

               अब तो प्रीतम के अइसने एक-दू घाँव के अवई ले नर्मदा उपर लोकनाथ के नजर सख्त होगे। माँ-बाप हर तो राहय नहीं। छोटे-छोटे भाई-बहिनी राहैं। घर मं नर्मदा के सरीर बस राहय ; मन कहीं अउ तवँरत राहै। लोकनाथ ह हर-हमेसा वोला बरजय कि प्रीतम ले बिल्कुल दुरिहा रहा। घर मं वोला आय बर मना कर अउ आते ते तुरते जायेबर कहे कर। अब नर्मदा तो प्रीतम के सती बदनाम होइगे राहय,तभे तो वोहर प्रीतम संग जिनगी बिताय के मन बना डारे राहै। वो कोनों के बात ल कान नइ धरै। नान्हें भाई-बहिनी हर नर्मदा बर सोग मरै। वो मन घलोक सब जानै ; समझैं। वोमन कभू-कभू नर्मदा ल दिल्लगी करँय कि जाना दीदी प्रीतम संग बिहाव कर ले। ' नर्मदा हाँस डरै।
                आज नर्मदा अपन मोसी घर बिहाव छावनी पावर हाऊस आय राहै। इँहचे प्रीतम संग भेंट होगे। ताहन दुनोंझन गोठियात-गोठियात न्यू बसंत टाकिज कोती निकलगें। गोठे-गोठ मं नर्मदा कथे - ' प्रीतम, तैं कब तक मोर संग अइसने करत रहिबे।

मोर संग बिहाव कर लेना मंदिर-वंदिर मा। मोर तो बदनामी होइगे हे। चल, मोला काँहचो होय ले जा , मैं जायेबर तइयार हँव।'

              ' तें कइसे बात करतस...काँह ले के जाहूँ तोला..? अइसना चलन देना... कहवइया ल काहन दे...हाथी रेंगते त कुकुर भूँकते। अउ एक बात अहू हे नर्मदा कि मैं कुवाँरा हँव...अउ तैं ह सादी-सुदा हावस। कइसे बनही तैं तो सेकंड हैंड आस। फस्र्ट अउ सेकंड हैंड ले थर्ड के काय होही ? ' कुटिल मुस्कान संग प्रीतम जोरदार ठहाका मारिस।

               ' प्रीतम... तैं का बात करत हस...अब तोला समझ आवत हे...वोतेक दिन ले तै...?' काहत नर्मदा काठ अस रहिगे। काँटे मं लहू नहीं कस वोकर हालत होगे। येसने गोठियात-गोठियात बिहतरा घर मं आइन। थोरिक बेर गेये ले नर्मदा ह प्रीतम खोजन लागिस। प्रीतम गायब। आज नर्मदा ल टूट के बगरे अस लागिस। बिहाव के झरे ले घर आइस।

               एक दिन के बात आय। असाढ़ महीना आय। गाँव मं ईतवारी मानत राहय , गाँव मं बंद राहै। लोकनाथ ह अपन ममा गाँव पचेड़ा गेय राहै। भीखम अपन संगवारी घर गेय राहै। गौरी घलो घर मं नइ राहै। नर्मदा ह राहय घर मं एकेझन। तभे प्रीतम हर जेवरा-सिरसा ले अपन निजी काम निपटाके आवत खानी फेर लोकनाथ घर आइस। आज फेर दुनोंझन संघरगें। दुनोंझन भरले बेर गोठियात रिहिन। नर्मदा ल प्रीतम के दारू पियई ह पता चलगे। वोला बिल्कुल अच्छा नइ लागिस। थोरिक गुस्सा होगे - ' पी-खा के हमर घर तैं मत आय कर। भइया के आय के पहिली तैं इहाँ ले चल दे।'

              ' अरे छोड़...ना...तोर भइया-वइया ला। हम बना लेबोन वोला।' लड़भीड़-लड़भीड़ करत प्रीतम किहिस।   
              ' पहिली मोला तो बना ले...ताहन...' काहत नर्मदा हाँस डारिस।
              ' अरे तैं सेकंड हैंड आस। तोर अउ मोर कइसे बनही। पर मैं आज खाके जाहूँ...समझेस ना...मैं तोला खाके जाहूँ।' प्रीतम ह नर्मदा के लक्ठा मं चलदीस।
             ' सेकंड हैंड सुन के...' नर्मदा के एड़ी के रीस तरुवा मं चघगे। तभो ले ठंडा दिमाक ले बोलिस - ' तैं मोला घेरी-बेरी अइसन झन कहे कर। मोला अच्छा नइ लागै। अब तैं अपन सन ले जा मोला। मैं तोर सन कइसनो करके रहि-जाहूँ।'

            ' त तोला अउ काय काहँव सेकंड हैंड... तोला काँह ले जाहूँ। मोला तोर अस हजारों मिलही बढ़िया कुआँरी-कुआँरी...' काहत प्रीतम नर्मदा ल जबरदस्ती पोटार लीस - ' मोला भूख लागत हे , समझ गेस ना...? अब नइ सही जावत हे। मोर भूख-पियास ल चल मिटा अब। '
         नर्मदा ल बड़ा बेकार लागिस। कथे-' तैं नाटक झन कर। रहना हे ते सोझबाय रहा। नहिं ते इहाँ ले जा। ' नर्मदा प्रीतम ल धकियाइस।
           ' मैं तो खाहूँ काहत हँव ना...। ' प्रीतम के हाथ नर्मदा के खांध मं पहुँचगे- ' बगेर खाये मैं तो जावँवच् नहीं...' काहत नर्मदा के अँछरा ल खींचन लागिस।

           नर्मदा हर पहिली डर्रागे। काँपगे। हाथ जोंड़न लागिस। पर बिनय-सिनय मं काम बने अस नइ  लागे ले नर्मदा काली रूप धरलीस। दूनों मं हाथापाई होवन लागिस। नर्मदा के लुगरा-पोल्खर चिरागे। प्रीतम के नीयत समझ आगे नर्मदा ला। हूरहा नर्मदा ह प्रीतम ल झटकारिस ते वो दाँय्ह ले गिरगे। तभे प्रीतम हर ' ये तोर काय नाटक आय साली...हरामजादी... अब तोला काय होगे बेसिया...' काहत नर्मदा ल एक राहपट मारदीस। ताहन नर्मदा रनचंडी बनगे। अइसे अपन दूनों बाँह झटकारिस ते हूरहा प्रीतम फेंकागे। उही करा माढ़े पीढ़ा धरे चिचियावत नर्मदा ह प्रीतम ल एक घाँव मारिस। प्रीतम ले देके उठिस। कुरिया ले निकलत प्रीतम ल फेर एक पीढ़ा दन्नाइस। लड़भीड़-लड़भीड़ करत  प्रीतम खोर कोती निकलन लागिस। वोकर पाछू डहर जाके नर्मदा ह मुँड़ीच्-मुड़ी ल पीढ़ा मं मारत गीस। ले देके हालत-डोलत खोर मं निकलके गिरगे। रद्दा रेंगइया अउ गाँववाले मन ह सकलागें। प्रीतम ल पानी पिययिन। एक-दू घुटका पी के थोरिक देर बाद आँखी-कान ल छटकादिस। थोरकिन बेर के बाद नर्मदा जइसने रिहिस, तइसने घर ले निकलीस। मामला ल सब समझगें। नर्मदा ह प्रीतम के लास ल निहारत , भींड़ ल फँकियावत बीच-सड़क मं आइस। सब डहर ल वो देखिस। कोनों मनखे के वोला कुछू कहे के हिम्मत नइ होइस। नर्मदा गली-गली जावन लागिस। लोगन अपन-अपन घर-मुँहाटी ले देखत राहैं। गोठ निकलत राहै - ' येकर किस्मत ह खराब हे बिचारी के...ननपन के दुख पाइस ये लइका ह ओ...बाप-महतारी संग मं रहितिन ते अइसे नइ होतिस...भाई घलो येला अबड़ बरजीस...वो रोगहा बड़ धोखा बाज निकलीस, मरगे ते बने होगे.... बेटीजात के कभू नंदिया के नाम मत रखिस...ये नोनी हर वो साले ल मारके कउनों गलत नी करे हे...।' नर्मदा ह मनखे के तरा-तरा गोठ सुनत थाना डहर मुड़िस।
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@ टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"
      व्याख्याता ( अंग्रेजी )
     शास.उच्च. माध्य. शाला - घोटिया
      जिला - बालोद ( छ.ग. )
     सम्पर्क : 9753269282.
      घोटिया-बालोद.

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1 टिप्पणियाँ

  1. बड़ सुघ्घर ढंग ले हमर गांव गंवई के नारी परानी के पीरा ल देखावत कहनी आदरणीय बड़े भैया जी 🙏🙏🙏🙏 सुघ्घर सिरजन बर अंतस ले बधाई पठोवत हवंव।

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