लोक गीतों का उद्भव संभवतः उतना ही प्राचीन है जितना की मानव जीवन। आदि युग से जब मानव कन्द्राओं , गुफाओं और जंगलों में रहता था, तो वह प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए …
**कविता** बुलंदी पर है अभी बादल, के सावन का महीना है। कही घनघोर, सराबोर, कही मूसलाधार बरसना है।। लुका छिपी खेले दिनकर, रैना चाँद न दिखता है। तमस ही है तमस निशा, पसारे हाथ न दिखता है।। वसुधा भ…
**मानव जात बड़ी दुखदायी ** सरहदे इंसान की खिंची लकीरे है, उस पार तू, इस पार मै। भूमी तो एक थी दुनिया की, मै भारत ,तू पाकिस्तान है।। .............................. ...... एक चिड़िया भुलकर , पाकिस्…
**जुन्ना फसल ल नवा करा** कोदो दिखय न राहेर संगी, न तिवरा, उरीद ओन्हारी। अरसी भर्री खार न दिखय, न बर्रे, कुसयार बारी।। पल्टू परेवा धान नंदागे, गुरमटिया, चिनाउर लुचाई। हि…
स्मरण किए दिवंगत कलाकार को पद्म श्री पूनाराम निषाद को दी श्रद्धांजलि छतीसगढ़ी लोक कला, संस्कृति को बचाए रखने का मुख्य श्रेय यहां के लोक कलाकारों-साहित्यकारों को जाता है। ऐसे कलाकारों को शासन-प्रशासन …
बाँसुरी वादन के हस्ताक्षर हैं सतीश सिन्हा भिलाई इस्पात नगरी में श्रीमती दशरी बाई सिन्हा व कमल सिंह सिन्हा के घर जन्मे सतीश सिन्हा होनहार पुत्रों में से एक हैं।बचपने से संगीत के प्रति रूचि रखने वाले स…
मायके का दुलार और तीजा तिहार डॉ. पीसी लाल यादव भारतीय जीवन व संस्कृति में बड़ी विविधता है। इस विविधता का कारण यहाँ विभिन्न धर्मो और विभिन्न संस्कृ…
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